सोमवार, 12 अप्रैल 2010

नेहरु-गांधी और बच्चन परिवार की दोस्ती और दुश्मनी

पिछले कुछेक दिनों से अमिताभ बच्चन और नेहरु-गांधी परिवार के बीच की दुश्मनी चर्चा में है। सुनने को बहुत मिला, लेकिन किसका अहेसान किस पर है यह समझने के लिए थोडे फ्लेशबेक में जाने की जरुरत है।
बच्चन परिवार का नेहरु परिवार के साथ रिश्तों की शुरुआत इलाहाबाद से शुरु होती है। हरिवंशराय बच्चन को केम्ब्रीज युनि. में पढने भेजने के लिए नेहरुजी ने ही स्कोलरशिप मंजूर की थी और बाद में उन्हें विदेश विभाग में सन्मानपूर्वक की नौकरी भी दिलवाई थी। एक दिन सरोजिनी नायडू ने कवि हरिवंशराय बच्चन और उनकी शीख पत्नी तेजी बच्चन का परिचय जवाहरलाल नेहरु और उनकी बेटी इन्दिरा से करवाया। उस समय अमिताभ की उम्र महज चार साल की थी। उस उम्र में ही उनका परिचय छोटे से राजीव से हुआ। उस समय राजीव की उम्र सिर्फ दो साल की थी। एक दिन बच्चन के इलाहाबाद स्थित बैंक रोड रेसिडेन्स में फेन्सी ड्रेस की स्पर्धा आयोजित की गई। उसमें राजीव गांधी ने हिस्सा लिया था और राजीव ने स्वातंत्रसेनानी जैसा ड्रेस पहना था। छोटे बच्चों के कपडे सरक जाते थे लेकिन सभी ने बहुत धमाल किया।
उसके बाद जवाहरलाल नेहरु नई दिल्ली में प्रधानमंत्री के नए निवासस्थान तीन मूर्ति भवन में रहने चले गए थे और तीन मूर्ति भवन की हरियाली में राजीव और संजय के साथ अमिताभ और अजिताभ को खेलते देखा गया था। राजीव और संजय दून स्कूल में पढने गए। जबकि अमिताभ और उनके भाई अजिताभ नैनीताल की शेरवूड स्कूल में पढने गए थे, लेकिन जब वेकेशन हो तब यह सारे दोस्त नई दिल्ली में मिलते और राष्ट्रपति भवन के स्विमिंग पुल में स्विमिंग करने जाते।
बहुत कम लोगों को पता है कि आज के महानायक अमिताभ बच्चन को वैश्चिक सिनेमाजगत के साथ सबसे पहले परिचय राजीव और संजय गांधी ने करवाया था। राष्ट्रपतिभवन में नहेरु-गांधी परिवार के लिए कुछेक क्लासिक युरोपियन फिल्मों का स्क्रीनिंग होता तब राजीव और संजय अमिताभ को यह फिल्में देखने साथ में ले जाते थे।
”क्रेइन्स आर फ्लाइंग” जैसी फिल्में उन्होंने साथ में देखी थी। खासकर युद्ध-विरोधी संदेश देती जेक और रशियन फिल्में राजीव और अमिताभ ने साथ में देखी थी। इन्दिरा गांधी के भरोसेमंद साथीदार यशपाल कपूर ने तो अमिताभ को दिल्ली की प्रतिष्ठित सेन्ट स्टीफन कोलेज में प्रवेश दिलवाया था, लेकिन अमिताभ ने अभ्यासक्रम की अनुकूलता के लिए विकल्प के तौर पर किरोरीमल कोलेज में जाना पसंद किया था जबकि अजिताभ सेन्ट स्टीफन कोलेज में पढने गए।
अमिताभ बच्चन पूना की फिल्म एन्ड टेलिविजन इन्स्टीटयूट में अभिनय का कोर्स करने के बाद काम ढूंढते थे। कही काम नहीं मिल रहा था तब उन्हें पहला फिल्म ब्रेक ”सात हिन्दुस्तानी” फिल्म में मिला। यह फिल्म के ए अब्बास ने बनाई थी और के ए अब्बास इन्दिरा गांधी के बहुत निकट थे। कहा जाता है कि इन्दिरा गांधी की सिफारिश के कारण ही अमिताभ को इस फिल्म में काम मिला था।
उसके बाद इन्दिराजी हरिवंशराय बच्चन को राज्यसभा में ले गई जबकि तेजी बच्चन को १९७३ में फिल्म फाइनान्स कोर्पोरेशन का डायरेक्टर बना दिया गया। यह वह समय था जब अमिताभ और जया की शादी थी। महेमानों का बहुत छोटा लिस्ट तैयार किया गया था। महेमानों का लिस्ट तैयार करते समय संजय गांधी परिवार की ओर से उपस्थित थे।
बहुत कम लोग जानते है कि अमिताभ बच्चन ने पूरे समय के एक्टर के तौर पर कामकाज शुरु किया तब राजीव गांधी आये-दिन अमिताभ को मिलने सेट पर जाते थे। फिल्म का शोट पूरा ना हो तब तक वे अमिताभ का इंतजार करते थे। शूटिंग डिस्टर्ब नहीं करते थे।
अमिताभ खुद ही पुरानी बातों को याद करते हुए कहते है : ”राजीव कभी भी कही भी उनके परिवार के नाम का इस्तेमाल नहीं करते थे। कई बार कोई पूछे तो वे सिर्फ ”राजीव” इतना ही कहते। सरनेम बोलते नहीं थे जिससे कोई उन्हें जल्दी पहचान ना सके और सामान्य इन्सान के साथ उनका नाता बना रहे”।
उसके बाद इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित किया। उस समय अमिताभ और संजय गांधी एक साथ देखने मिलते। आपातकाल को समर्थन देने के संदर्भ में उन्हें मीडिया के अनेक सवालों का सामना करना पडता था। ११ अप्रैल को राजीव गांधी ने दिल्ली में एक चेरिटी शो ”गीतो भरी शाम” का आयोजन किया था। उसमें अमिताभ और जया बच्चन ने उपस्थिति दर्ज कराई थी।
इन्दिरा गांधी द्वारा लगाये गये आपातकाल के समय विद्याचरन शुक्ल केन्द्र सरकार में माहिती और प्रसारण विभाग के मंत्री थे। आपातकाल के दौरान किसी भी फिल्म में हिंसात्मक द्र्श्य हो तो सेन्सर बोर्ड फिल्म को पास नहीं करता था। उस दौरान रमेश सीप्पी की फिल्म ”शोले” बनी। उसमें तो भरपूर हिंसा थी। आपातकाल के नियमो के अनुसार इस फिल्म को सेन्सर में पास करवाना नामुमकीन था, लेकिन इस फिल्म में अमिताभ बच्चन भी धर्मेन्द्र के साथ मुख्य किरदार में थे और अमिताभ के नेहरु-गांधी फेमिली के साथ पारिवारिक संबंध के कारण ही ”शोले” फिल्म में थोडी बहुत काट-पीट और क्लाइमेक्स में चेन्जीस के साथ सेन्सर बोर्ड में पास करवा दी गई। यह भी नेहरु-गांधी परिवार का बच्चन पर एक बडा अहेसान था।
आपातकाल का समय पूरे १९ महिने रहा। इस दौरान किशोरकुमार के गाने ओल इन्डिया रेडियो या दूरदर्शन पर प्रसारित करने पर प्रतिबंध रखा गया था। आपातकाल के नियम बहुत सख्त थे।
ऐसे में संजय गांधी की प्लेन एक्सीडेन्ट में मौत हुई। राजीव और अमिताभ ज्यादा करीब आये। १९८२ में एशियन गेम्स का शानदार खेलोत्सव आयोजित किया गया तब राजीव गांधी ने ओपनिंग सेरेमनी के समय अमिताभ बच्चन के सिग्नेचर वोइस का इस्तेमाल किया था। इस खेलोत्सव के मुख्य ओर्गेनाइजर राजीव गांधी थे जबकि अमिताभ बच्चन एन्कर थे।
राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने उसके बाद उनके बचपन के साथी अमिताभ को राजनीति में ले आए। कांग्रेस की टिकट दिलवाकर इलाहाबाद से चुनाव लडवाया और अमिताभ बच्चन को लोकसभा में ले गए।
इस दौरान वी.पी.सिंह ने बोफोर्स कांड चगाया और उसमें अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ का नाम भी आया। असमंजस में फंसे अमिताभ बच्चन ने राजनीति छोड दी। बरसो बाद बोफोर्स कांड में गांधी परिवार को क्लीनचिट मिली है।
अमिताभ बच्चन ने सक्रिय राजनीति छोड दी, लेकिन राजनेताओं के साथ दोस्ती नहीं छोडी। एक सुबह उस समय के प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौडा और शिवसेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे अमिताभ के जूहु स्थित बंगले में सुबह-सुबह चाय-नास्ता करते दिखे। यह बात कई लोगो के देखने में आई।
उसके बाद अमिताभ की एबीसीएल कंपनी को जबरदस्त नुकसान हुआ। अमिताभ बच्चन ने इस नुकसान की भरपाई के लिए समाजवादी पार्टी के अमरसिंह और ”सहारा”वाले सुब्रतो रोय की मदद ली। इस आर्थिक मदद करने के बदले में अमरसिंह अमिताभ बच्चन परिवार को मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी में खींच ले गये। अमरसिंह ने जया बच्चन को राज्यसभा में स्थान दिलवाया और एक प्रकार से राजनीति छोड देने के बावजूद बच्चन परिवार गांधी परिवार के विरोधी ऐसे मुलायम की पंगत में बैठ गया। अमरसिंह एक उस्ताद इन्सान है। अमरसिंह ने तो जिस पूंजी की मदद की थी उसका बदला समाजवादी पार्टी को ग्लेमरस बनाने में कर लिया।
अमिताभ बच्चन ने एक प्रोफेशनल एक्टर होने के बावजूद अपने आपको सिर्फ एक्टिंग में सीमित रखने के बजाय जया बच्चन को संसद में भेजा और अमिताभ बच्चन खुद उत्तर प्रदेश के ब्रान्ड एम्बेसेडर बन गए। खून, लूट, चोरी-डकैती, अपहरण से त्रस्त युपी की उन्होंने तारीफ की, जहां बीजली या सडक का आज भी ठिकाना नहीं है।
ऐसा ही मुंबई में हुआ। अमिताभ बच्चन खुद राजनीति में न होने के बावजूद उनकी पत्नी जया बच्चन को मुंबई के एक समारोह में मराठी भाषा का नाटक लेकर बैठे ठाकरे परिवार को चिढाने के लिए विधान किया ”हम तो युपीवाले है, हिन्दी में बोलेंगे”। और राज ठाकरे चिढ गये। अमिताभ की फिल्में प्रदर्शित ना हो उसके लिए उधम मचाया। आखिर में अमिताभ बच्चन ने माफी मांगी तब मामला शांत हुआ।
अब फिर अमरसिंह का मामला आया है। मुलायम और अमरसिंह के बीच रिश्ते बिगडने से अमरसिंह ने पार्टी छोडी। उनके साथ जयाप्रदा ने भी पार्टी छोडी, लेकिन जया बच्चन को राजनीति में लानेवाले अमरसिंह को दु:ख तब हुआ जब जया बच्चन अमरसिंह के साथ नहीं रही। निजी तौर पर अमरसिंह मानते है कि बच्चन परिवार ने उन्हें धोखा दिया है।
उसके बाद अमिताभ बच्चन गुजरात में उनकी ”पा” फिल्म टेक्स फ्री करवाने आए। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अमिताभ से भी ज्यादा चतुर निकले। फिल्म को टेक्स फ्री करा देने के बदले में मोदी ने अमिताभ को गुजरात का ब्रान्ड एम्बेसेडर बना दिया। इस कारण से गुजरात को फायदा ही हुआ, लेकिन सवाल यह है कि अमिताभ ने यह काम उनके फिल्म को टेक्स फ्री करवाने के लिए ही किया है या फिर गांधी परिवार के जानी दुश्मन नरेन्द्र मोदी के साथ हाथ मिलाकर अमिताभ ने सोनिया गांधी पर पलट वार किया है यह तो अमिताभ ही जाने। नरेन्द्र मोदी जिस तरह एक नेता है और अंदर से अभिनेता भी है, उसी तरह अमिताभ बच्चन एक अभिनेता है और अंदर से एक राजनेता भी है। और इसी कारण इलाहाबाद से सांसद बनने के बाद सार्वजनिक रुप से भले उन्होंने राजनीति छोड दी हो। उन्होंने अंदर से राजनीति छोड दी या नहीं यह सवाल अभ्यास का विषय है और इसी कारण से ही राजनीति उन्हें भी नहीं छोडती।
नेहरु-गांधी परिवार का बच्चन परिवार पर अनेक अहेसानों के बावजूद दो परिवारो के बीच यह दरार क्यों खडी हुई ? नेहरु-इन्दिरा-राजीव ने तेजी बच्चन, हरिवंशराय बच्चन और अमिताभ उन सभी को कुछ न कुछ दिया ही है।
मुंबई की बान्द्रा सी-लिंक के उदघाटन के समय अमिताभ बच्चन की उपस्थिति के बारे में और उसके बाद जो विवाद खडा हुआ है लगता है वह भी कुछेक कांग्रेसियों ने सोनिया गांधी की खुशामत के लिए ही शुरु किया गया है। सोनिया गांधी ऐसी निम्न स्तर की हरकतों से दूर रहना पसंद करती है, लेकिन महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के बीच की राजनीति अमिताभ बच्चन के विवाद के पीछे हो ऐसा लगता है। इस विवाद को बंद करने का आदेश भी १०, जनपथ में से ही आया है।
जय हिंद