गुरुवार, 28 मई 2009

टीम मनमोहन का कुनबा

आईए, देखते है टीम मनमोहन के नये कुनबे में क्या है। पिछले एक हफ्ते से चल रहे रुठने-मनाने का सिलसिला थम गया है और मनमोहन सिंह कैबिनेट विस्तार की पहेली बूझ गई है और आज 59 मंत्रियों के शपथ ग्रहण के साथ मनमोहन सिंह कैबिनेट रचना की कवायद पूर्ण हो जायेगी। 59 मंत्रियों की शपथ के साथ मनमोहन सिंह कैबिनेट की संख्या बढकर 78 पर पहुंच जायेगी। यह संख्या पिछली बार जितनी ही है। हमारे यहां संविधान में संशोधन हुआ उसके बाद प्रधानमंत्री लोकसभा के सदस्यों की संख्या के 15 प्रतिशत जितने मंत्रियों को अपने मंत्रीमंडल में शामिल कर सकते है उस हिसाब से मनमोहन सिंह अपने मंत्रीमंडल में 81 सदस्यों को शामिल कर सकते है। मनमोहन सिंह ने दो चरण में ही 78 सदस्यों को शामिल कर लिया है। मनमोहन सिंह ने मंत्रीमंडल में ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं रखी है। हालांकि मनमोहन सिंह अभी दूसरे तीन सदस्यों को शामिल कर सकते है लेकिन उन्होंने यह जगह इमरजन्सी के लिए रखी है।
मनमोहन सिंह ने दूसरे चरण में जिन्हें चुना है उसमें से अधिकांश नाम पूर्व निर्धारित है और नये मंत्रियों में भी कैबिनेट या राज्य में जिन्हें बिठाया गया है उसमें भी नयापन कम है। हालांकि कुछ नया नहीं ऐसा भी नहीं है। कैबिनेट मंत्रियों में करुणानिधि के दो रिश्तेदार और तीसरे ए.राजा का नाम पूर्व निर्धारित है। इन तीनों में से दयानिधि मारन को छोड बाकी के दो की योग्यता कैबिनेट मंत्री बनने की नहीं है लेकिन मनमोहन सिंह को उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाये बिना चलता भी नहीं इसलिए उनको निभा लिया गया। ए.राजा और अझागिरि के किस्से में तो मनमोहन सिंह की राजनीतिक मजबूरी थी लेकिन कुमारी सेलजा किस आधार पर कैबिनेट रेन्क में आ गई यह पता नहीं चलता। सेलजा 1990 में लोकसभा में पहली बार चुने जाने के बाद नरसिंहराव सरकार में मंत्री बनी थी। 1996 में वे फिर से चुनी गई लेकिन 1998 और 1999 में हार गई। सेलजा के पिता चौधरी दलबीरसिंह हरियाणा के दलित नेता थे और उसी कारण सेलजा भी राजनीति में आ गई। सेलजा दो बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में आई लेकिन उनका कामकाज ऐसा नहीं था कि उन्हें कैबिनेट की रेन्क मिल जाये। दूसरी ओर मनमोहन सिंह ने राज्य मंत्रियों में जिन्हें चुना है उसमें ही कुछेक लोग ऐसे है जो सेलजा से सिनियर है और उनसे भी ज्यादा सक्षम है। महत्वपूर्ण बात यह है कि वे लोग उनकी क्षमता साबित कर चुके है। उदाहरण के तौर पर जैसे कि, प्रफुल पटेल, जयराम रमेश, दिनशा पटेल। मनमोहन सिंह ने उन्हें स्वतंत्र चार्ज के साथ चाहे राज्य मंत्री बनाया हो लेकिन वे लोग सेलजा से निम्न श्रेणी में गिने जायेंगे। इसी तरह शशी थरूर या भरतसिंह सोलंकी जैसे सांसद राज्यमंत्री के रुप में है और इन लोगों को तो दूसरे किसी कैबिनेट मंत्री के हाथ के नीचे काम करना पडेगा। हो सकता है उन्हें सेलजा के हाथ के नीचे ही काम करना पडे। शशी थरूर चाहे लोकसभा में पहली बार चुने गये हो लेकिन इसमें दो राय नहीं कि उनका अनुभव देखते हुए वे कैबिनेट मंत्री बनने की योग्यता रखते है और बावजूद इसके उनके जैसे लोगों को एक ओर रख सेलजा जैसो को कैबिनेट रेन्क मिला यह बडे आश्वर्य की बात है। सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को जैसा ठीक लगे वैसा। हो सकता है कि इसके पीछे भी उनकी कोई गिनती होगी जो हमारे जैसो के समझ में ना आये।
मनमोहन सिंह की बिदा होनेवाली कैबिनेट में ज्योतिरादित्य सिंधिया थे उन्हें यथावत रखा गया है। राहुल गांधी ब्रिगेड के ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलोट और जितिन प्रसाद को मनमोहन सिंह कैबिनेट में जगह दे दी गई है और एकमात्र मिलिन्द देवरा ही बाकी रह गये है। मिलिन्द देवरा के पिताजी मुरली देवरा पहले ही कैबिनेट मंत्री पद पर बैठ गये है इसलिए शायद मिलिन्द का पत्ता कट गया हो।
मनमोहन सिंह के बिदा होते मंत्रीमंडल में गुजरात में से तीन मंत्री थे और उसमें से एक केन्द्रीय और दो राज्य मंत्री थे। शंकरसिंह वाघेला केन्द्रीय मंत्री थे जबकि नारणभाई राठवा और दिनशा पटेल राज्यमंत्री थे। शंकरसिंह बापु और नारण राठवा चुनाव हार गये इसलिए यह दो जगह खाली थी और उनके स्थान पर भरतसिंह सोलंकी और तुषार चौधरी आ गये। यह दोनों राज्य मंत्री है। दिनशा पटेल को यथावत रखा गया है और उन्हें भी राज्य मंत्री पद पर बिठाया गया है। हालांकि उन्हें स्वतंत्र चार्ज दिया गया है यानि कि केन्द्रीय कक्षा का दर्जा। दिनशा जैसे-तैसे करके 800 वोट से चुनाव जीते अगर भारी लीड के साथ जीतते तो शायद शंकरसिंह बापु की जगह केन्द्रीय मंत्री बने होते।
मनमोहन सिंह कैबिनेट में सबसे खास बात है अगाथा संगमा की पसंदगी। 24 जुलाई 1980 के दिन पैदा हुई अगाथा संगमा की उम्र महज 29 साल है और इतनी छोटी उम्र में अगाथा की पसंदगी केन्द्रीय मंत्रीमंडल में हुई यह वाकई इस देश के युवाओं के लिए बहुत अच्छी खबर है। माना कि अगाथा संगमा को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता पूर्णो संगमा किसी समय में लोकसभा के स्पीकर थे और मेघालय में उनका एकचक्री शासन है। अगाथा पूर्णो संगमा की बेटी न होती तो राजनीति में आ सकती थी यह बहुत बडा सवाल है। हालांकि इन सारी बातों को एक ओर रख 2९ साल की युवती इस देश में मंत्री बने यह चमत्कार ही तो है और उन्हें मिला यह मौका इस देश के युवाओं को मिला अवसर ही है। इस देश में बूढे राजनीतिज्ञ युवाओं को मौका दे यही बडी बात है और हम सभी चाहेंगे कि अगाथा उसे दिये इस गए मौके को समझे और कामयाब हो।
जय हिंद

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

युवाओं को शुभकामनाऐं और बुजर्गों को साधुवाद.

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत बढिया लिखा।