मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

करुणानिधि की गुलांटबाजी

हमारे देश में राजनेता जनता को एकदम बेवकूफ समझते है और ऐसा मानकर चलते है कि जनता में अक्ल है ही नहीं। वे हमें जैसी घुट्टी पिलायेंगे हम पीते जायेंगे। और तो और उनमें स्वाभिमान जैसी कोई चीज भी नहीं है। वे जो बक रहे है, "अभी बोला और अभी भूल जाओ" के तर्ज पर होता है और ऐसी बेशर्मी का ताजा उदाहरण है करुणानिधि की गुलांटबाजी।
करुणानिधि ने अभी एक दिन पहले ही बडे जोर-शोर से घोषणा की थी कि, वे स्वयं श्रीलंका में अलग तमिल राष्ट्र के लिए लड रहे एलटीटीइ के सर्वेसर्वा प्रभाकरन को आतंकवादी नहीं मानते और प्रभाकरन उनके मित्र है। करुणानिधि ने कहने को कह तो दिया लेकिन बाद में उन्हें अहसास हुआ कि इस कारण सोनिया गांधी नाराज हो जायेंगी इसलिए उन्होंने गुलांटबाजी लगाई। इसलिए उन्होंने जल्दबाजी में यह सफाई दी कि प्रभाकरन चाहें उनके मित्र है लेकिन एलटीटीइ ने राजीव गांधी की हत्या की इसके लिए उसे माफ नहीं किया जा सकता। यह बात बडी अजीब सी लगती है ना! जिस इंसान के आतंकवादी कृत्य के लिए आप उन्हें माफी देने को तैयार नहीं उसी इंसान को आप आतंकवादी मानने से इंकार कर रहे हो?
अभी देश में चुनाव का माहौल है और इस माहौल में राजनेता सिर्फ यही सोचते है कि, जनता को किस तरह बेवकूफ बनाकर वोट हासिल किया जाये और करुणानिधि ने भी वही किया। करुणानिधि अब 80-82 साल के होने को आये है। लेकिन इस देश की 70% जनता को अभी उस उम्र से गुजरने में समय है। करुणानिधि जो गुलांटबाजी कर रहे है जनता उसे ना समझे इतनी बेवकूफ भी नहीं है।
देश में 28 राज्य है और सभी राज्यों में जनता विभिन्न कारणों से बेवकूफ बनती रही है लेकिन महत्वपूर्ण फार्मूला कुछेक राज्यों के लोगों में प्रादेशिक संकुचितता की भावना को पैदा करने के मूलभूत सिध्धांत पर ही आधारित है। तमिलनाडू में यह फार्मूला असरकारक है और तमिल जनता के स्वाभिमान की बात कर-कर के अन्नादुराई से लेकर करुणानिधि तक के नेता अपनी दुकान चलाते रहते है। कभी-कभार तमिल भाषा के गौरव के नाम पर हिन्दी का विरोध तो कभी श्रीलंका में रहते तमिलों पर अत्याचार की बात। मुद्दे बदलते रहते है, बात वही की वही रहती है। इस बार श्रीलंका में बसे तमिलों पर श्रीलंकन सरकार और सिहालियों द्वारा हो रहे अत्याचारों की बात चर्चा में है और वैंको से लेकर जयललिथा तक के सभी इसी मुद्दे को भुनाने में लगे हुए है।
करुणानिधि तमिलनाडू के मुख्यमंत्री है और श्रीलंका में आतंकवाद फैला रहे संगठन एलटीटीइ के साथ उनका गहरा संबंध है लेकिन उनकी मजबूरी यह है कि, अभी उनका गठबंधन कांग्रेस के साथ है। कांग्रेस और एलटीटीइ की शत्रुता जगजाहिर है (एलटीटीइ ने राजीव गांधी की हत्या की थी)। इसलिए करुणानिधि अपना प्यार एलटीटीइ पर नहीं जता पा रहे थे।
करुणानिधि ने चाहे अभी कांग्रेस के डर से ऐसा किया हो लेकिन जो बात उनके जबान पर थी वह होठों पर आ गई। एलटीटीइ और प्रभाकरन के साथ उनकी मित्रता बहुत पुरानी है और राजीव गांधी हत्या की जांच के लिए नियुक्त जैन जांच समिति ने तो राजीव गांधी की हत्या के लिए करुणानिधि के सामने ऊंगली उठाई थी। जैन समिति का अंतरिम रिपोर्ट 1998 में आया था और उस समय केन्द्र में इन्दरकुमार गुजराल की तीसरे मोरचे की सरकार थी। करुणानिधि की पार्टी उस सरकार में हिस्सेदार थी। कांग्रेस ने उस समय इस मुद्दे को बहुत भुनाया था और करुणानिधि की पार्टी को सरकार में से बाहर भगाने के लिए जोरदार आक्रामक रुख अपनाया था। चूंकि, तीसरे मोरचे के हाइकमान इसके लिए तैयार नहीं हुए और परिणाम स्वरुप कांग्रेस ने गुजराल को घर रवाना कर दिया। कांग्रेस एवं करुणानिधि का संबंध इतना पुराना है और दोनों के बीच शत्रुता है।
राजनीति जो न दिखाये वो कम है। आज करुणानिधि और कांग्रेस साथ-साथ है। कांग्रेस ने थोडे से फायदे के लिए करुणानिधि को माफ कर दिया और अपने पास बुला लिया। करुणानिधि ने प्रभाकरन के लिए जो प्यार जाहिर किया उसके बाद कांग्रेस को उसके लिए आपत्ति बतानी चाहिए लेकिन सत्ता के समीकरण अच्छे अच्छों की बोलती बंद कर देते है। कांग्रेस के किस्से में भी वही हुआ है। सोनिया गांधी आज कांग्रेस की सर्वेसर्वा है और वे खुद ही अपने पति की हत्या में जिसका हाथ था उसके साथ हिस्सेदारी कर सकती हो तो भला दूसरा कोई क्या बोल सकता है? राजीव गांधी की हत्या में खुद का हाथ था ऐसा एलटीटीइ कबूल चुकी है। 2006 में एलटीटीइ के प्रवक्ता एन्टोन बालासिंगम ने खुद एन डी टी वी को दिए एक इंटरव्यू में कबूला था कि राजीव की हत्या बहुत बडी गलती थी, इस ऐतिहासिक गलती का हमें अफसोस है। राजीव की हत्या में तांत्रिक चंद्रास्वामी का हाथ था ऐसा भी बाहर आया था। राजीव हत्या केस के एक आरोपी रंगनाथ ने अपने बयान में कबूला था कि राजीव की हत्या करवाने के लिए चंद्रास्वामी ने फायनान्स की व्यवस्था की थी। इस कबूलात के बाद भी चंद्रास्वामी का बाल भी बांका नहीं हुआ। राजनीति बडी अजीब चीज है और यह इंसान की संवेदना को भी मार डालती है इसका यह सबूत है। करुणानिधि ने कबूल किया है कि प्रभाकरन उनका मित्र है। जो इंसान पिछले कुछेक वर्षों से श्रीलंका में आतंकवाद फैला रहा है और जिस इंसान का हाथ हजारों लोगों के खून से रंगा हुआ है उसे अपना मित्र मानने वाले नेता इस देश में राज कर रहे है इसे हमारे देश की बदनसीबी नहीं तो और क्या कहे।
जय हिंद

2 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

bhaarteey raajnetaaon kee bahut see chaaritrik visheshtaaon mein se ek hai ye to, aapne vistaar se bahut achha raajnitik aalekh likhaa.

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

आपने बेहद अच्छी समिक्षा कर डाली इन्ह "गुलाटबाजी" लोगो कि।(दोहरे व्यक्तित्व मे जीनेवाले)

आभार जी