सोमवार, 20 अक्तूबर 2008

यह अचानक क्या हुआ ?

जमाना तो नहीं बदला लेकिन कांग्रेस जरुर बदल गई है। जी हां ! दिल्ली में गत महिने हुए बम ब्लास्ट के बाद दिल्ली के जामिया नगर में स्थित बाटला हाउस नामक मकान में हुए एन्काउन्टर के मामले शुरु हुई राजनीति में गर्मी आ गई है। अब तक तो समाजवादी पार्टी और उनके जैसे दंभी सांप्रदायिक और वोट बैंक के लिए मुसलमानों के सामने मुजरा करने में जिन्हें जर्रा सी भी शर्म नहीं आती ऐसी जमात ही इस मामले पर हो-हल्ला मचा रही थी लेकिन शनिवार को कांग्रेस भी बडी बेशर्मी के साथ इस राजनीति में शामिल हो गई इसके साथ ही इस मामले में एक जबरदस्त मोड आ गया है।
जामिया नगर के बाटला हाउस में एन्काउन्टर हुआ.... पुलिस ने दो आतंकवादियों को मार गिराया और दो को दबोचा ठीक उसके दूसरे दिन एक टीवी चैनल ने कह दिया कि यह एन्काउन्टर नकली था और पुलिस ने एकदम बेकसूर मुस्लिम युवकों को मार गिराया। इस टीवी चैनल ने ऐसा दावा भी किया था कि इस एन्काउन्टर में शहीद हुए मोहनचंद शर्मा वास्तव में पुलिस की गोली का शिकार हुए है। हमारे यहां टीवी चैनलों के बीच टीआरपी बढाने की जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चलती है इसलिए यह लोग कुछ भी कर बैठते है। इस चैनल ने भी वही किया लेकिन इसकी वजह से समाजवादी पार्टी को अच्छा-खासा मौका मिल गया और इसने इस मामले पर हो-हल्ला मचाना शुरु कर दिया। अमर सिंह इन सबमें सबसे पहली श्रेणी में आते है। क्योंकि वे मुलायम सिंह के खास भरोसेमंद है। अमर सिंह ने अपना नाटक जमाया और उनके पीछे-पीछे वामपंथी भी जुड गये बाद में बंगाल में से टाटा को भगाने के बाद बेकार बैठी ममता भी इसमें जुड गई। बची कसर को अमरसिंह ने शुक्रवार को जामिया नगर में बाटला हाउस में सार्वजनिक सभा का आयोजन कर पूरी कर दी। इस सभा में मुसलमानों की बडी संख्या देख कांग्रेस के होश उड गये। दिल्ली में दो महिने बाद विधानसभा चुनाव होने है बाद में चार-पांच महिने बाद लोकसभा चुनाव भी है ऐसी स्थिति में अगर मुसलमान नाराज हो जाये तो कांग्रेस का राम नाम सत्य हो जाये ऐसा सोचकर कांग्रेस भी इस मामले में आगे आई। और ताबडतोब शनिवार को ही अपने मुस्लिम नेताओं को आगे कर इस एन्काउन्टर के मामले ज्युडिशियल इन्कवायरी की मांग कर डाली। कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री से मिलकर इस एन्काउन्टर के मामले ज्युडिशियल इन्कवायरी की मांग की है और अभी केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है इसे देखते हुए इसमें दो राय नहीं की इस मांग का स्वीकार होगा। कांग्रेस ने अमर सिंह या ममता की तरह यह एन्काउन्टर नकली था ऐसा नहीं कहा है लेकिन ऐसा कहने की जरुरत भी नहीं है। और अगर कांग्रेस ऐसा कह दे कि यह एन्काउन्टर नकली था तो उसके विरोधी बाकायदा कांग्रेस को शिकंजे में लेंगे और कांग्रेस के शासन में मुसलमानों का एन्काउन्टर होता है ऐसा हल्ला मचा देंगे इसलिए कांग्रेस सीधे नहीं कह सकती लेकिन ज्युडिशियल इन्कवायरी की मांग का मतलब साफ है कि इस एन्काउन्टर में कुछ तो गलत है।
कांग्रेस ने खुद सामने से जांच की घोषणा करने के बजाय अपने कांग्रेसी अल्पसंख्यक नेताओं के प्रतिनिधिमंडल को आगे कर इस एन्काउन्टर के मामले जांच की मांग क्यों की? यह समझने जैसी बात है। इस मामले अमर सिंह मंडली ने हो-हल्ला मचाया उसके बाद कांग्रेस ने शुरु में उनकी बात नहीं सुनी। अमर सिंह का नाटक बढा उसके बाद कांग्रेस ने स्पष्टता की कि इस एन्काउन्टर के मामले किसी भी प्रकार की जांच का सवाल ही नहीं उठता और अब जो होगा अदालत में होगा। इस रवैये को दाद देने जैसा था। चूंकि सामने कांग्रेस में भी अर्जुन सिंह जैसे कुछेक नेता ऐसे थे जो अमर सिंह के सूर में सूर मिला रहे थे लेकिन उस समय कांग्रेस ने उनकी आवाज दबा दी थी। अब दिल्ली में अमर सिंह ने सभा संबोधित की उसके बाद कांग्रेसी डर गये लेकिन पहले कांग्रेस ने कहा था कि ज्युडिशियल इन्कवायरी नहीं होगी तो फिर सामने से जांच की घोषणा नहीं की जा सकती इसलिए उसने अपने कांग्रेसी अल्पसंख्यक विभाग के प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं को आगे कर इस एन्काउन्टर के मामले ज्युडिशियल इन्कवायरी की मांग करा दी।
कांग्रेस की यह मांग आघात जनक है। आघात इस बात का नहीं कि कांग्रेस ने यह मांग क्यों की क्योंकि कांग्रेस से दूसरी कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती। दु:ख तो हमारे यहां वोट बैंक के लिए नेता कितनी हद तक गिर सकते है यह देखकर होता है। अमर सिंह मंडली के लिए मुसलमान माई-बाप है और उनकी राजनीति की दुकान भी उन पर ही चलती है इसलिए यह लोग ऐसे मौके की तलाश में ही रहते है लेकिन कांग्रेस को ऐसा क्यों करना पडा यह समझ में नहीं आ रहा। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है और दिल्ली पुलिस सीधे उनकी हूकुमत में आती है उसे देखते हुए अगर कांग्रेस को लगता है कि इस एन्काउन्टर में कुछ गलत हुआ है तो उसे तुरंत उन जिम्मेदार अधिकारियों को घर रवाना कर देना चाहिए। भला ऐसा करने से उसे कौन रोक सकता है। यह उसकी हूकुमत में आता है लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं करती क्योंकि उसे दोनों हाथों से लड्डू खाना है। एक ओर वह आतंकवाद के सामने लडने में आक्रामक तेवर अपना रही है और इस मामले में किसी को छोडना नहीं चाहती वहीं दूसरी ओर मुसलमानों को नाराज करने को भी तैयार नहीं है। कांग्रेस को डर है कि यह एन्काउन्टर नकली था और पुलिस ने बेकसूर मुसलमानों को मार गिराया ऐसा कह दो-चार पुलिसवालों को घर भगा दे या मोहनचंद शर्मा की शहादत पर दाग लगाये तो हिन्दू भडक उठेंगे और भाजपा को एक अच्छा खासा मुद्दा मिल जायेगा वहीं दूसरी ओर अगर अमरसिंह और ममता को आगे बढने दे तो यह लोग मुस्लिम वोट बैंक हजम कर लेंगे। उसे यह दोनों चाहिए। इसलिए यह बीच का रास्ता चुना गया। एक ओर ज्युडिशियल इन्कवायरी का नाटक चलें और दूसरी ओर चुनाव से भी निपटा जायें। भला कांग्रेसियों को कौन समझाये कि यह नामुमकिन है। इसमें तो कांग्रेस की हालत धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का जैसी हो जायेगी।
कांग्रेस और अमरसिंह या ममता चाहे राजनीति खेलें लेकिन सवाल नैतिकता का है। यह लोग जो कह रहे है उसके समर्थन में उनके पास कोई सुबूत नहीं है। पुलिस ने जो एन्काउन्टर किया वह सुबह के उजाले में किया और उसमें एक पुलिस अधिकारी शहीद हुआ। इस एन्काउन्टर में शक की कोई गुंजाइश नहीं है फिर भी इसे शक के दायरे में खींच कर राजनीति खेली जा रही है। अब इससे ज्यादा मैं क्या कहूं ?
जय हिंद

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

ममता और माया : राजनीतिक नौटंकी

मायावती वर्सिस सोनिया और रायबरेली की रणभूमि
केन्द्रीय रेलमंत्री लालूप्रसाद यादव ने 2008-09 के रेल बजट में सोनिया गांधी के संसदीय मतक्षेत्र रायबरेली में रेलवे के डिब्बे बनाने के प्रोजेक्ट की घोषणा की थी। इस प्रोजेक्ट को सोनिया गांधी का ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ माना जाता है क्योंकि इस प्रोजेक्ट के तहत रायबरेली में 10 हजार लोगों को नौकरी मिलने वाली है। इस प्रोजेक्ट में रेल मंत्रालय रु. 1000 करोड का निवेश करेगा और 2010 में उत्पादन शुरु होगा। प्रथम वर्ष 1200 डिब्बे और उसके बाद हर साल 1500 डिब्बों का निर्माण इस प्लान्ट में होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए मायावती सरकार ने ही 400 एकड जमीन का आवंटन भी रेल मंत्रालय को कर दिया था और ग्रामसभा ने इस जमीन का कब्जा भी रेल मंत्रालय को सौंप दिया था। 14 अक्तूबर को इस प्लान्ट का शिलान्यास होनेवाला था और उसके चार दिन पहले यानि कि 10 अक्तूबर को रायबरेली के डिस्ट्रिक्ट मेजिस्ट्रेट संतोष कुमार श्रीवास्तव ने घोषणा की कि राज्य सरकार ने यह जमीन रेल मंत्रालय को सौंप दी थी लेकिन इस जमीन पर कोई प्रोजेक्ट शुरु न होने के कारण किसानों में असंतोष था और वे अपनी जमीन वापस चाहते है इसलिए राज्य सरकार ने इस जमीन आवंटन को रद्द करने का निर्णय लिया है। 11 अक्तूबर को मायावती ने रायबरेली के डिस्ट्रिक्ट मेजिस्ट्रेट के रिपोर्ट के आधार पर रेल मंत्रालय को जमीन आवंटन रद्द करने की घोषणा की और उसके कारण सोनिया एवं लालू जिसमें उपस्थित रहने वाले थे उस शिलान्यास को स्थगित रखना पडा। रेल मंत्रालय ने मायावती सरकार के निर्णय को सुप्रीमकोर्ट में ललकारा है और सुप्रीमकोर्ट ने जमीन आवंटन रद्द करने के निर्णय के सामने स्टे दिया है। अब 17 अक्तूबर को सुनवाई होगी। रेल मंत्रालय ने राज्य सरकार के पक्ष में निर्णय आए तो रायबरेली में ही रेलवे की जमीन पर इस फैक्ट्री को शुरु करने की घोषणा कर दी है इसे देखते हुए इसमें दो राय नहीं कि यह प्रोजेक्ट रायबरेली में ही शुरु होगा।
हम जब दुनिया के दूसरे देशों की ओर देखें और उन देशों के विकास की ओर नजर डालें तब अफसोस होगा कि जिनके पास कोई स्त्रोत नहीं है, कोई ताकत नहीं है, मेनपावर नहीं है ऐसे देश आज समृद्ध है। हमारे पास सब कुछ होते हुए भी हम कंगाल जैसी स्थिति में जीने को मजबूर है। यह सवाल बार-बार जेहन में उठता है और इसका सिर्फ एक ही जवाब है हमारी सियासत और राजनेता। हमारा देश पिछडेपन और कंगाल अवस्था में जीने को क्यों मजबूर है? हम सबसे पिछडे क्यों है? क्योंकि हमारे देश में शासनकर्ताओं की एक ऐसी जमात मौजूद है और उनके रहते हमारा देश कभी विकास की बुलंदी को नहीं छु सकता। इन नेताओं ने अपने निजी स्वार्थ के कारण इस देश के विकास में अडचन डाल दी है।
रायबरेली में रेल कोच फैक्ट्री को दी गई जमीन का आवंटन रद्द होना तथा कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को सार्वजनिक रैली को संबोधित करने से रोकने के लिए धारा 144 के तहत प्रतिबंधात्मक आदेश इन दोनों के कारण उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी सरकार की अक्ल पर तरस आती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उस 400 एकड जमीन के मामले पर यथास्थिति बनाये रखने के आदेश दिए हैं जिसका आवंटन मायावती सरकार ने इस तर्क के साथ रद्द कर दिया कि वहां के किसान रेल कोच के लिए जमीन देने को तैयार नहीं है। चूंकि भारत सरकार एवं अन्य तथा रायबरेली के किसानों की ओर दाखिल याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का अंतरिम आदेश दे दिया अत: बाजी हाथ से जाने की आशंका के चलते मायावती सरकार ने धारा 144 के तहत प्रतिबंधात्मक आदेश जारी कर दिये। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को शिकस्त देने में चालाकी, चालबाजी और चतुराई की अपनी भूमिका होती है। यहां समझ में आ रहा है कि ऐसे क्षुद्र टोटकों को आजमाकर मायावती अपनी ही फजीहत लेंगी।
राजनीति में मायावती का अपना धाकड अंदाज है। इसी के चलते वह कई बार तानाशाह जैसी भूमिका में दिखाई देती है। दूसरी बात सत्ता की गर्मी उनके सिर पर कितनी ही बार इस हद तक चढी देखी गई कि राजनीति में न्यूनतम संकोच और मर्यादा का पालन तक होते नहीं दिखा।
राजनीतिक जीवन और पद दोनों के मामले में किसी को अमर नहीं कहा जा सकता। वास्तव में कोच फैक्ट्री के भूमि आवंटन को रद्द किये जाने से भारतीय राजनीति में नये संक्रमण के संकेत मिलते हैं। प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल को श्रेय से वंचित करने के लिए अडंगा डालने की राजनीति की जो शुरुआत पश्चिम बंगाल में सिंगूर में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने की उसे रायबरेली में मायावती ने आगे बढाया है। साणन्द (गुजरात) में कांग्रेस के प्रवक्ता अर्जुन मोढवाडिया भी इस रास्ते पर चलने की सोच रहे हैं। कुल मिलाकर महसूस होने लगा है कि कुछ ठीक नहीं हो रहा है। जहां तक मायावती की बात है, तो वह सत्ता की दादागिरी के चक्कर में कांग्रेस को ही पैर जमाने का मौका दे बैठी है।
कुछ समय पूर्व बंगाल में ममता बनर्जी ने ऐसी ही भावना का प्रदर्शन कर रतन टाटा को बंगाल से भगाया था और अब मेडम माया की बारी है। ममता की लडाई गलत नहीं थी लेकिन उनका स्वार्थ गलत था। मायावती ने अभी जिस तरह रायबरेली में रेल कोच फैक्ट्री के प्रोजेक्ट में अडचन पैदा की है यह उनकी तुच्छ मानसिकता को प्रदर्शित करता है। ममता के किस्से में तो यह विरोध पार्टी में है और उन्हें राजनीतिक तौर पर फिर से खडे होने के लिए एक नौटंकी की जरुरत थी इसलिए उन्होंने यह खेल खेला लेकिन मायावती के किस्से में तो यह मजबूरी भी नहीं है। मायावती उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री है और उनके राज्य में एक बडा प्रोजेक्ट आए, इससे 10 हजार लोगों को नौकरी मिलेगी, तब तो उन्हें इस प्रोजेक्ट के कारण खुश होना चाहिए और इस प्रोजेक्ट का स्वागत करना चाहिए लेकिन मेडम इस प्रोजेक्ट का सत्यानाश करने पर तुली है।
आज जब बडी कंपनियां अपने राज्य में प्रोजेक्ट लेकर आए तो इसके लिए मुख्यमंत्री उद्योगपतियों से अपील करते है लेकिन माया मेडम राजनीतिक हिसाब करने में लगी है यह देखकर दु:ख होता है। जिस देश में ऐसे राजनेता हो वह देश कभी अमरिका या जापान या जर्मनी को छोडो लेकिन चीन या कोरिया की बरोबरी भी नहीं कर सकता। राज्य का जो होना है हो और लोगों को नौकरी मिले या ना मिले लेकिन उनका स्वार्थ पूरा होना चाहिए। अगर हमारा शासनकर्ता ऐसा मानता है तो ऐसा नेता देश का विकास करवा सकेंगे?
रायबरेली के प्रोजेक्ट के मामले सबसे आघातजनक बात तो यह है कि उन्होंने जिस जमीन के आवंटन को रद्द किया यह जमीन उन्होंने ही रेल मंत्रालय को दिया था। उस वक्त मायावती और कांग्रेस के बीच हनीमुन चल रहा था इसलिए मायावती कांग्रेस पर फिदा थी और मेडम सोनिया की हर बात में हां में हां मिलाने को अपना सौभाग्य समझती थी। रायबरेली सोनिया गांधी का मतक्षेत्र है इसलिए उन्होंने झुमते हुए यह जमीन आवंटित किया था। उसके बाद अब तक जैसा होता रहा है वैसा कांग्रेस के साथ भी मायावती का अनबन हुआ इसलिए वे कांग्रेस को दबोचने का मौका ढूंढती रहती है। कांग्रेस ने मुलायम के साथ हाथ मिलाया इसलिए माया मेडम ज्यादा क्रोधित हो गई है और कांग्रेस का पत्ता साफ करने का एक भी मौका गवाना नहीं चाहती। कांग्रेस और मायावती कुश्ती करे या हनीमुन मनाए इससे लोगों को कोई लेना-देना नहीं है लेकिन इसके कारण विकास पर जो असर हो रहा है यह बिल्कुल नहीं चलेगा।
मायावती को इन सब से कोई लेना-देना नहीं है। मायावती भारतीय राजनीति में एक अजीब केरेक्टर है और उनमें दिमाग या तमीज नाम की कोई चीज नहीं है। इनका जिनके साथ अनबन हो जाए उनका सत्यानाश करने में वे किसी भी हद तक जा सकती है। अमरसिंह से लेकर अमिताभ बच्चन और अनिल अंबानी से लेकर आडवानी तक सभी को इन्होंने अपना कातिल अंदाज दिखा दिया है। मेडम जिनके सामने विरोध जताती है उनकी गरज पडे उन्हें गले लगाने में भी इन्हें कोई झिझक महसूस नहीं होती। एक जमाने में मायावती और भाजपा साथ-साथ थे तब मायावती लालजी टंडन को अपना भाई कहती और आडवानी को पिता समान गिनती थी। भाजपा के साथ अनबन होने बाद मेडम भाजपा के नेताओं के कान से कीडे रैंगे ऐसी गालियां देती है। मायावती के लिए यह बहुत ही मामूली बात है। कल को अगर जरुरत पडे तो यह आडवानी को बाप बनाकर पांव पड सकती है और राजनाथ को भाई बनाकर राखी भी बांध सकती है। हमें इससे कोई ऐतराज नहीं है। आडवानी या राजनाथ को ऐतराज ना हो तो हम भला कौन होते है? यूं तो रायबरेली में रेल प्रोजेक्ट स्थापित नहीं हो तो भी हमें कोई ऐतराज नहीं और उसका हमें कोई फर्क नहीं पडता लेकिन हम कहां माया या ममता जैसी मानसिकता वाले है। हम तो पूरे देश को एक मानकर सोचते है इसलिए दु:खी होना पडता है।
माया-ममता या अन्य इनके जैसे लोग एक महत्वपूर्ण बात भूल जाते है। ऐसे छोटे-छोटे मुद्दों से इनका स्वार्थ पूरा होता होगा और दो-चार दिन का नशा चढता होगा लेकिन इससे समाज को और आम आदमी को कोई लाभ नहीं मिलता है। अगर किसी शासक को ज्यादा लंबे समय तक टिकना है तो इन सब मुद्दों को एक ओर रख लोगों के लिए सोचने की आदत डालनी चाहिए, विकास को महत्व देना चाहिए। लोग विकास को याद रखेंगे। आपके स्वार्थभरे विजय को नहीं। धन्य है हमारे देश के यह नेता! ऐसे नेता हो तो हमारा देश आगे कैसे आयेगा?
जय हिंद

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

यह बडे ताज्जुब की बात है...


हमारे देश में मुस्लिम वोट बैंक के लिए राजनेता किसी भी हद तक गिर सकते है और ऐसी राजनीति ओर किसी देश में देखने नहीं मिलेगी। मुस्लिम मतों के लिए हमारे राजनेता जिस तरह मुसलमानों को खुश करने के प्रयास करते है ऐसा तो मुस्लिम देशों में भी नहीं होता होगा। और इसका ताजा उदाहरण समाजवादी पार्टी के नेता अमरसिंह ने दिल्ली में एन्काउन्टर में मारे गये दो आतंकवादियों के मौत के मामले शुरु की कोशिश है।
कौन है यह अमरसिंह ? चलिए, सबसे पहले जानते हैं अमरसिंह के बारे में।
अमरसिंह की करम कुंडली कुछ इस प्रकार है...
27 जनवरी 1956 के दिन उ.प्र. के अलीगढ में पैदा हुए अमरसिंह की परवरिश और पढाई कोलकाता में हुई। मध्यमवर्गीय राजपूत खानदान के अमरसिंह ने हिन्दी मीडियम में पढाई की और सेन्ट जेवीयर्स में से ग्रेजुएट हुए। कोलकाता में अपनी राजनैतिक करियर की शुरुआत करनेवाले अमरसिंह मूल कांग्रेसी है और बुराबझार जिला कांग्रेस समिति के मंत्री के रूप में इन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी। अमरसिंह आज अरबोपतियों में से एक है और इसकी शुरुआत भी वे कांग्रेस में थे तब से हुई थी। कोलकाता में 1980 में उनकी मुलाकात कांग्रेसी नेता वीरबहादुर सिंह के साथ हुई और अमरसिंह ने इसका जमकर लाभ उठाया। 1985 में वीर बहादुर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने उसके बाद नये उद्यमियों को सिर्फ एक प्रतिशत ब्याज पर राशि देनेवाली राशि संस्थाओं के साथ समझौते का काम सौंपा और मौके का फायदा अमरसिंह ने अपने बिजनेस को जमाने में किया। 1988 में वीरबहादुर बिदा हुए तब तक अमरसिंह करोडपति बन चुके थे। कांग्रेस में थे तब उनकी मुलाकात माधवराव सिंधिया से हुई। माधवराव 1990 में क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख पद से चुनाव लडे थे और उनके प्रतिद्वंदी जगमोहन दालमिया थे। उस वक्त अमरसिंह ने माधवराव को समर्थन दिया और माधवराव एक मत से जीत गये थे। इस अहेसान का बदला माधवराव ने उन्हें ओल इन्डिया कांग्रेस कमिटी में शामिल करवाकर चुकाया। 1990 में मुलायम सिंह यादव का उदय हुआ उसके साथ ही अमरसिंह ने उनके साथ अपने संबंधो को मजबूत बनाना शुरु किया और मुलायम ने जब नई पार्टी की रचना की तब वे मुलायम के साथ जुड गये। तब से अमरसिंह मुलायम के साथ ही है। अमरसिंह का व्यक्तित्व विवादास्पद है और वे सतत विवाद खडा करते रहते है। गुजरात के जमाई अमरसिंह का बॉलीवुड में जोरदार संपर्क है और बच्चन खानदान एवं अनिल अंबानी परिवार के साथ उनकी मित्रता चर्चास्पद है।
दिल्ली में आतंकवादियों ने सिरियल बम ब्लास्ट किये उसके बाद दिल्ली पुलिस जामियानगर में आतंकवादियों की खोज में गई थी और वहां आतंकवादियों ने पुलिस पर गोलीबारी शुरु कर दी और उसमें दो आतंकवादी मारे गए। मोहनचंद शर्मा नामक पुलिस के एक इन्स्पेक्टर भी शहीद हो गये। दूसरे दो आतंकवादी पकडे गये और अभी वे दोनों दिल्ली पुलिस की हिरासत में है। यह कहने की जरुरत नहीं कि, दिल्ली में मारे गए दो आतंकवादी और पकडे गये दोनों आतंकवादी मुस्लिम थे।
दिल्ली में जो एन्काउन्टर हुआ वो नकली था ऐसा हंगामा दंभी सांप्रदायिकों की जमात ने उसी दिन से शुरु कर दी थी। हमारे यहां कुछेक टीवी चैनल वाले भी इस जमात के दलाल के रूप में कार्य करते है और उन चैनलों ने कही से दो-चार लोगों को पकड कर कैमेरे के सामने खडा कर दिया और इन लोगों ने कह दिया कि एन्काउन्टर नकली था। चैनलों को ऐसा ही चाहिए था और उन्होंने राई का पहाड बना दिया। और इस हंगामे का लाभ उठा जामिया मिलिया के वाइस चान्सलर ने घोषणा कर दी कि जो दो आतंकवादी पकडे गये है उनके कानूनी सहाय का तमाम खर्च युनिवर्सिटी उठायेगी।
इस देश में राजनेताओं की एक ऐसी भी जमात है जो ऐसे मौके के इंतजार में पलक पांवडे बिछाये बैठी होती है। ऐसा कुछ हो तब इनके मुंह में मुस्लिम मतबैंक का शहद टपकने लगता है। टीवी चैनलों ने शुरु किया इसलिए यह राजनेता भी कूद पडे। मायावती इसमें सबसे आगे थी। मायावती मुस्लिम वोटों के लिए कुछ भी कर सकती है और इसलिए वे इसमें शामिल हो यह समझा जा सकता है लेकिन उनके पीछे-पीछे कुछेक कांग्रेसी भी इसमें शामिल हो गये। दिग्विजयसिंह, अर्जुनसिंह इत्यादि इस जमात के बेजोड नमूने है और उन्होंने यह झंडा उठा लिया। दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है और दिल्ली में कानून-व्यवस्था बरकरार रखने की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है इसके बावजूद यह कांग्रेसी अपना ड्रामा कर रहे है जो आघातजनक है।
मुलायम और अमरसिंह मुस्लिम वोटबैंक के राजनीतिक चैम्पियन है लेकिन फिलहाल उनकी पार्टी केन्द्र में कांग्रेस को समर्थन दे रही है इसलिए यह लोग खुलकर बाहर नहीं आते थे और अबु असीम आजमी जैसे टट्टुओं को आगे कर बाजी खेलते थे लेकिन कांग्रेसियों को खुलेआम उनकी सरकार के खिलाफ बोलते देखने के बाद कांग्रेस को अहेसास हुआ कि हम शर्म में रह गये और दूसरा इसका फायदा उठा गया। उन्होंने सोचा कि अभी बाजी हाथ से नहीं गई है ऐसा समझकर अभी बाकी रही कसर पूरी करना चाहते हो इस तरह लडाई शुरु कर दी। और इस लडाई के जुनून में अमरसिंह अपना विवेक भी भूल गये और एकदम गद्दारी की हद पर उतर आये है।
अमरसिंह ने जामियानगर के एन्काउन्टर को तो नकली कहा है उसके साथ मोहनचंद शर्मा की शहादत पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। पुलिस नकली एन्काउन्टर कर सकती है लेकिन क्या कोई पुलिसवाला ऐसे नकली एन्काउन्टर में अपनी जान दे सकता है ? और यह सवाल असली या नकली एन्काउन्टर का नहीं है लेकिन हमारे राजनेता कितनी हद तक गिर सकते है उसका सुबूत है। अमरसिंह की पार्टी इस देश की सरकार को समर्थन देती है और ऐसे लोग ही ऐसी बातें करते है यह बडे अफसोस की बात है। अमरसिंह को तो सामने मुस्लिम वोटबैंक दिख रही है इसलिए उन्हें वे क्या कह रहे है उसकी जरा सी भी परवाह नहीं है लेकिन जो लोग अपनी जान की बाजी लगाकर इस देश के लिए लड रहे है उन पर क्या बीत रही होगी इसका विचार करना चाहिए। अमरसिंह की बयानबाजी सुनने के बाद कौन पुलिसवाला आतंकवाद के खिलाफ लडने के लिए तैयार होगा ? आप अपने दो-पांच प्रतिशत मुस्लिम वोटबैंक के लिए एक जांबाज के शहादत की कीमत कोडी की कर दो तो इस देश के लिए लडने हेतु कौन आगे आयेगा। अमरसिंह के बयान पर इस देश में बैठे लोगों ने चुप्पी साधी है यह देख कर मुझे बहुत दु:ख हो रहा है। अमरसिंह ने तो इस मामले केन्द्र में से अपना समर्थन वापिस लेने की धमकी भी दे दी है। कांग्रेस के सत्यदेव चर्तुवेदी जैसे इके-दुके नेता अमरसिंह के इस ड्रामे पर बोले तो अमरसिंह ने बडी बदतमीजी के साथ चिरकूट जैसे विशेषणों का इस्तेमाल कर उनका अपमान किया इसके बाद भी कांग्रेसी दिग्गज चुप्पी साधे है। वास्तव में कांग्रेस को अपनी गर्जना सुनानी चाहिए और अमरसिंह को साफ शब्दों में कह देना चाहिए कि वे अपनी जुबान को लगाम दे और यह समर्थन वापिस लेने की धमकी बंद करे। दिल्ली में जामियानगर में जो हुआ वह नकली एन्काउन्टर नहीं था और इसकी नैतिक जिम्मेदारी कांग्रेस की है। कांग्रेस को इसकी जिम्मेदारी ले खुलेआम बाहर आना चाहिए और अमरसिंह को उसकी औकात बता देनी चाहिए। कांग्रेस को अमरसिंह जैसे लोगों को उसकी हेसियत का अहसास तो कराना ही चाहिए लेकिन इससे पहले जो लोग कांग्रेस में होने के बावजूद सरकार के साथ खडे रहने की जिनकी ताकत नहीं है उन्हें भगा देना चाहिए। जबकि कांग्रेस में यह नैतिक हिम्मत होती तो आज यह दिन देखना नहीं पडता। यह घटना कांग्रेस के लिए एक सबक है। आलम यह है कि गुजरात में हुए आतंकवादियों के एन्काउन्टर के मामले हंगामा मचाने वाली कांग्रेस को अभी अमरसिंह मंडली उनकी ही दवा का डोज उन्हें पीला रही है और कांग्रेस को यह एन्काउन्टर नकली नहीं था ऐसा कह अपना बचाव करना पड रहा है। इसे हम क्या कहें?

जय हिंद

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

अपने वक्त के भारत का नेता

(शास्त्री जी के जन्म दिवस पर)

कद उनका अदना सा था लेकिन बडे मजबूत थे विचार
शास्त्री जी ने दिया था नारा `जय जवान जय किसान'

क्या यही जवान और किसान हमारे राष्ट्र का निर्माण करेंगे ?
जो कि पेट और प्राणों से जुझ रहे है..... लड रहे है

आज उस जवान और किसान की कहानी
आप सभी भारतीयों को है सुनानी

आज का जवान और किसान किस तरह जीता है
जीता भी है या मर-मर कर जीता है

किसान जो कि भारत मां का बेटा कहा जाता है
पूरे दिन खून-पसीना बहाने के बाद भी

अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी तक नहीं जुटा पाता
क्या उस किसान से हमारे राष्ट्र का निर्माण हो पायेगा ?

कुछ बादल ने साथ नहीं दिया, साहुकारों के कर्ज में डुबा सो अलग
इसलिए इन सारी समस्याओं का हल वो आत्महत्या कर सुलझाता है

अब किसान की बीवी जो अपने बच्चों का भूख नहीं देख सकती
और अपने तकदीर को कोसती चल पडती है किसी कुंए की ओर

फिर किसान की जवान होती बेटी पर हर निगाह लगी थी
वह किसी अंधेरे कोने में अपने आपको छुपाना चाहती है

लेकिन,
वहां भी उसे ढूंढ लिया उन खूंखार भेडियों ने
और यह सारा मंजर देखता है किसान का जवान होता बेटा

इतना सब कुछ होने के बावजूद उसमें लडने की खुमारी है,
वर्तमान की न्याय व्यवस्था पर वह आंखें टिकाये खडा है

वो सोचता है कि उसे कभी तो न्याय मिलेगा
लेकिन उसका सोचना शून्य था.......

फिर वो चल पडता है उन हैवानों की बस्ती की ओर
अपनों को खोने का दर्द और जा मिलता है उस गुट से

जो उसे अवाम के नाम पर गुमराह करता है
और आतंकवादी के रुप में उसका नया जन्म होता है

क्या उस जवान से हमारे राष्ट्र का निर्माण हो पायेगा ?

भारत में सिर्फ डार्विन का सिध्धांत ही चल पाया है
शक्तिशाली ही यहां दो वक्त की रोटी खा सकता है

इसलिए .....
जय जवान जय किसान नहीं
जय फायदेवाला धर्म और बाकी सब राष्ट्रीय शर्म बोलिए
जय हिंद

एक पैगाम बापू के नाम

(गांधी जी के जन्म दिवस पर)

आज 2 अक्तूबर है बापू
आपका जन्म दिन है आज

हे मानव संस्कृति के मूर्तिमान,
भारत आत्मा के मंत्राकार !

आज राज्य के कार्यालयों में साल भर से धूल फांकती
आपकी प्रतिमा को साफ किया जायेगा...

आज नेता, अफसर लंबे-लंबे भाषण देंगे आपके विचारों पर
लेकिन अमल कोई नहीं करेगा...

आपकी प्रतिमा पर माला चढाई जायेगी
और आदर्शो की स्तुति गाई जायेगी...

भारत बहुत बदल चुका है..... बापू !

हां ! यहां विकास तो बहुत हुआ है
लेकिन आम आदमी का नहीं, संस्कृति-सभ्यता का नहीं

यहां सच पल-पल मरता है,
झूठ का बोलबाला है..... बापू !

ईमानदारी को छलनी किया जाता है,
समझदारी को बेवकूफी समझी जाती है

बेईमानी से सारे देश का कारोबार चलता है,
भला परिश्रम कौन करना चाहेगा?

भारतीय अब चाह कर भी तपस्या नहीं कर सकता है
और ना ही अपने अधिकारों के लिए लड सकता है

क्योंकि,

उसे अपने अधिकार मांगने पर असंख्य समस्याओं से घेरा जाता है
मजबूर कर सत्य से कोसों दूर उठाकर फेंक दिया जाता है..... बापू !

जो इंसाफ की गुहार लगाता है उसे केवल धक्कों के कुछ नहीं मिलता
और झूठ के बलबूते पर खोटा सिक्का चलता रहता है

लंबी जिरह और तारीखों के बीच उसके पैर के जूते घिस जाते है
आजादी के 61 साल बाद भी भारतीय गुलामी में जी रहा है

इंसाफ मांगने वाला दम तोड देता है और फिर,
उसकी फाइल हमेशा के लिए बंद हो जाती है

तो वह गुलाम हुआ कि नहीं?
भारत की आत्मा मर चूकी है..... बापू !

भारत तो उसी दिन मर चुका था जिस दिन आपकी हत्या हुई थी
उस मरे हुए भारत का आपको प्रणाम है..... बापू !

उसे राह दिखाने वाला, सोचने की ताकत देने वाला अब कोई गांधी नहीं रहा
अब तो केवल वोटों की चोटों पर आप केवल नोटों पर ही दिखते हो

आज के युवा आपके विचार और आदर्श पर हंसते है
अहिंसा, धर्म और सत्याग्रह जैसे शब्दों का कोई मोल नहीं रहा

आपके देश में आपको ही ब्लेक मेल किया जाता है
सिसकियों और चीत्कारों से आकाश भरा पडा है

बेगुनाह जिंदगियां बेवक्त कफन ओढने को मजबूर हुई है
हाय! दहशतगर्द बेखौफ है, भारत की तकदीर फूट गई है

हम मनुष्य नहीं, नागरिक नहीं, कठपूतलियां है
हम ताकतवरों और षडयंत्रकारियों की राजनीतिक संपत्ति हैं

उफ ! `सोने की चिडिया' कहा जाने वाले भारत का चेहरा धुंआ-धुंआ
चीख-पुकार और आर्तनाद! और सोती रहेंगी सरकार ?

सत्याग्रह को आधार बना अहिंसा के मार्ग पर चलकर
आपने ब्रिटिश सरकार को घर भगाया था

लेकिन आज विषधारी नागों की टोली से,
हमें मुक्त कौन करवायेगा? ..... बापू !

बापू ! इन घर के भेदियों ने चिंता बढा दी है
आपके आदर्श और विचारों की पल-पल हत्या होती है

बडे-बडे समाजवादी अपने विचार प्रस्तुत करते तो है
लेकिन चलता कोई नहीं,..... बापू !

क्योंकि वे जानते है यह मार्ग बडा ही कठिन है
सिर्फ प्रवचनों में ही अच्छा लगता है

उन नेताओं के मुख से आपका नाम सुनना भी
मुझे आपका अपमान सा लगता है,..... बापू !

आज सत्य की धुरी पर समय का रथ डगमगा रहा है
सत्ता की लडाइयों में आजादी का अर्थ कहीं खो गया है

क्या इन समस्याओं का कोई समाधान नहीं?
इन राजतंत्र के खंडहर में भारत स्वतंत्रता की सांस कब लेगा?

शांति-अमन की कामना अब व्यर्थ है
क्योंकि, आतंक के छाये में हम जीने के आदि हो चुके है

आज मेरे पैगाम से आपको आघात पहुंचा है ना..... बापू !
इन अधूरी मंजिलों को कौन मोल लेगा

आज आपके जन्म दिन पर मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है
सिवा कि इन भीगी पलकों से मैंने अपने भग्न हिय का भार उतारा है

इसलिए..... बापू !
ये दो-चार आंसू ही मेरी ओर से भेंट है आपके लिए

हिंद को एक बनाने के लिए आपने अपनी पूरी जिंदगी बिता दी थी ना
लेकिन आज इसी हिंद को टुकडों में बांटने के लिए पूरी अवाम आगे आयी है

वो भी अपने-अपने धर्मों का झंडा हाथ में लिए
अपने-अपने खुदा और भगवान की इबादत और प्रार्थना के बाद

अब कुछ नहीं बचा है..... बापू !
भारत का समाजवादी लोकतंत्र का सपना खो गया है कहीं.....
जय हिंद