रविवार, 30 नवंबर 2008

राजनीतिक दलों को वोट की चिंता है, देश की नहीं

मुंबई पर हुए आतंकी हमले पर बहुत कुछ लिखा गया है... बहुत कुछ सुना गया है। हमारा देश आतंकवादियों के लिए ‘खाला का घर’ हो गया है। तभी तो वे अपनी मर्जी से यहां आकर अपने नापाक इरादों पर अमल कर जाते है। हम एक अत्यंत लचर आंतरिक सुरक्षा तंत्र के साथ आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब देख रहे है। हमारे नाकारा रहनुमाओं ने देश को फिर से शर्मसार कर दिया। मुंबई के आतंकी हमलों ने देश के सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया तंत्र के कामकाजों की पोल खोलकर रख दी है। हर आतंकी हमले के बाद अगली बार कडा रुख अपनाने का रटा रटाया जुमला फेंका जाता रहा है। आतंक से लडने के बजाय नेता फिर एक दूसरे पर कीचड उछालने में मसरुफ हो गये हैं। इन पोची बातों को सुनते-सुनते देश ने पिछले आठ महीनों में पैंसठ से ज्यादा हमले अपने सीने पर झेले है।
बयानबाजी के तीर एक दूसरे पर छोडने वाले नेताओं के लिए यह हमला वोटों के खजाने से ज्यादा कुछ नहीं। आतंकवाद के खिलाफ एकता की बस बातें हैं। एकजुटता प्रदर्शित करने को पार्टियां साथ नहीं आती। एकजुटता होनी चाहिए, कहने से आगे इनकी गाडी बढती ही नहीं है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इस दिशा में एकजुटता दिखाने के लिए कोई ठोस पहल करने की जगह, सरकार को घेरने के लिए अनुकूल समय तलाश रही है। राजनीतिक दलों को वोट की चिंता है देश की नहीं। देश की चिंता होती तो आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की कोशिश की बात ही नहीं होती। यह तो अपने आप होता। हमारी पूरी राजनीतिक जमात किस हद तक खोखली हो गई है, इसे रात के अंधेरे में भी साफ देखा जा सकता है।
सुना है कि मुसीबत के वक्त ही अपने पराए की पहचान होती है। भारत मां को तो निश्चित ही अपने इन लाडले सपूतों (नेताओं) की करतूतों पर शर्मिंदा होना पडा होगा। आतंकवादियों के गोला बारुद ने जितने जख्म नहीं दिए उससे ज्यादा तो इन कमजर्फों की कारगुजारियों ने सीना छलनी कर दिया।
ऐसा लगता है देश के सड गल चुके सिस्टम को बदलने के लिए अब लोगों को ही सडकों पर उतरना पडेगा। आतंकी हमारे सुरक्षा व्यवस्था की किरकिरी उडा रहे है जिससे लोगों का मनोबल टूट रहा है। लोग महसूस करने लगे हैं कि उनकी सरकार उनकी रक्षा करने में सक्षम नहीं है और यही आतंकवाद की सफलता है।
जो लोग (आतंकवादी) ‘बोट’ से आये थे उनसे ज्यादा खतरनाक तो वे लोग (नेता) है जो ‘वोट’ से आते है (चुने जाते है)। ऐसे नाजुक पल में भी नेताओं का महाभारत चल रहा है जो इस देश की लाचारी है।
मुंबई आतंक से मुक्त तो हो गया लेकिन सवाल यह है कि अब इसके बाद क्या ? इस मुक्ति के लिए हमने बहुत बडी किमत चुकाई है। हमारे जांबाज जवान, २०० निर्दोष भारतीय और करोडों का नुकसान। आतंकियों ने हमारे देश के स्वाभिमान को आत्मगौरव को चकनाचूर कर दिया। यह मुठ्ठीभर आतंकी भारत के १२० करोड लोगों के दिलों में दहशत पैदा कर गये। और हमें याद दिला गए कि हमारे पास रिढ की हड्डी नहीं है। इन आतंकियों को मार गिराने के बाद हम विजयोत्सव मना रहे है लेकिन क्या हम इसके काबिल है ? नहीं, क्योंकि हम नहीं वे जीते है। यह हर भारतीय के माथे पर कलंक है और इस कलंक को मिटाने के लिए जरुरी है आक्रमण। यहां बात पाकिस्तान ने हजम किए काश्मीर की हो रही है।
मुंबई में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान का हाथ था। यह हमला करने वाले भी पाकिस्तानी थे। इन आतंकियों ने पाकिस्तान द्वारा हजम किए काश्मीर में प्रशिक्षण लिया। यह हमला जिस तरह से किया गया उसे देखते यह पांच या पंद्रह लोगों का काम नहीं है। यह बात कुछ हजम नहीं हुई कि पाकिस्तानी आतंकी समुद्र मार्ग से भारी मात्रा में विस्फोटक लेकर भारत में घुसे और किसी को कानो कान खबर तक नहीं हुई। पाकिस्तान के सहयोग के बिना इन आतंकियों ने हमें डरा दिया यह संभव नहीं। जिसे देखते हुए साफ है कि यह हमला पाकिस्तान ने ही करवाया है। इसलिए इस समय भारत को कुछ भी न सोचते हुए ‘अभी नहीं वो कभी नहीं’ का रुख अपनाना चाहिए। वैसे देखा जाए तो आतंकवाद के सामने लडने में हमारे शासक निक्कमे साबित हुए है लेकिन मनमोहन सिंह का रेकर्ड सबसे खराब है। देश में पिछले एक साल में आतंकवाद खूब फूला-फला है। आतंकवाद हमारे लिए नया विषय नहीं है लेकिन अब सहनशीलता की सारे हदें समाप्त हो गई है। आतंकवादी भी हमारी सहनशीलता की स्थिति भांप गए है।
यह समय मनमोहन सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं। पिछले साढे चार सालों में मनमोहन सरकार ने आतंकवाद के सामने घुटने टेकने के अलावा कुछ नहीं किया है। अगर इस समय वे अपने फर्ज से चुक गये तो इतिहास उन्हें कभी भी माफ नहीं करेगा। इस देश के १२० करोड लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी मनमोहन सरकार की है। और यह समय उस जिम्मेदारी को निभाने का है। जंग किसी समस्या का हल नहीं है लेकिन अगर कोई हमें बार बार ललकारे तो इसके अलावा कोई मार्ग नहीं बचता। पाकिस्तान वही कर रहा है और इस समय भारत को उसका मुंहतोड जवाब देना होगा। भारत पाकिस्तान पर हमला बोलेगा तो पाकिस्तान चुप्पी नहीं साध सकता इसके कारण काफी समस्याओं से मुकाबला करना पडेगा। और ऐसा न हो इसीलिए भारत को पाकिस्तान पर हमला करने के बजाय पाकिस्तान ने जिस काश्मीर को हजम कर लिया है वहीं जाकर हमला करना चाहिए। काश्मीर पाकिस्तान के बाप की जागिर नहीं है अगर पाकिस्तान ऐसा समझता है तो उसकी अकड को ठिकाने लाने की जरुरत है। भारतीय एयरफोर्स पाकिस्तान द्वारा हजम किए गए काश्मीर में घुसकर बमबारी करेगा उसके साथ ही पाकिस्तान और उसके दम पर उछलते आतंकवादी हरामजादों को भी एक मेसेज मिल जायेगा कि भारतीय शासकों ने अपने हाथों में चुडियां नहीं पहनी है। अगर वे भारत में घुसकर आतंक फैला सकते है तो भारत भी उनके घरों में घुसकर उन्हें सबक सिखाने की ताकत रखता है। भारत यह मर्दानगी बताये यह जरुरी है। देश के लोग जिस डर के बीच जी रहे है, सहमे हुए है और आतंकवादी का नाम सुनते ही उनके रौंगटे खडे हो जाते है उनके मनोबल को मजबूत करने और आत्मविश्वास जगाने के लिए ऐसा करना जरुरी है।
भारत हमला करेगा तो अन्य लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता करने की भी जरुरत नहीं है। दूसरे देशों पर आतंकवादी हमले होते है तो क्या वे हमें पूछने आते है ? अलकायदा ने वल्ड ट्रेड सेन्टर पर हमला किया है ऐसी आशंका के चलते ही अमरिका ने अफघानिस्तान को तहस-नहस कर दिया था और आज भी अमरिका वही कर रही है। अलकायदा के आतंकी पाकिस्तान में पनाह ले रहे है ऐसी आशंका के चलते अमरिका पाकिस्तान में घुसकर बमबारी कर आई, पाकिस्तान में मिसाइल फेंक आई। क्या कर लिया पाकिस्तान ने। और जो करना हो करे उसके लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए। यह रोज-ब-रोज कुत्ते की मौत मरने से तो अच्छा है एक बार यह जंग हो ही जाए। अंकुश रेखा पार और काश्मीर पर कब्जा।
मनमोहन सरकार के लिए यह इतिहास बनाने का समय है। नेहरु से लेकर वाजपेयी तक के प्रधानमंत्रियों ने की हुई गलती को सुधारने का मौका है। खास कर पाकिस्तानी आतंकवाद ने जिन निर्दोष भारतीयों की जान ली है उन तमाम को सच्ची श्रध्धांजलि देने का समय है। आज हम इन शहीदों की शहादत से नहीं सीखेंगे तो हमारी आजादी बेकार हो जायेगी। दिनकर जी ने बहुत पहले कहा था, क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो।
समझे !
जय हिंद

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