रविवार, 30 नवंबर 2008

इमेज नहीं देश बचाओ

मुंबई के आतंकवादी हमले से अवाक केन्द्र की मनमोहन सरकार अब धीरे-धीरे डेमेज कंट्रोल करने में जुट गई है। और इसकी शुरुआत हुई है शिवराज पाटिल से। पाटिल को गृहमंत्री पद से हटा यह पद चिदंबरम को सौंपा गया है। चिदंबरम आर्थिक बाबत में निष्णात है और उन्हें खुद भी मनमोहन सरकार के इस फैसले से झटका जरुर लगा होगा। अभी चहुओर आग ही आग है और शिवराज पाटिल ने उनके कार्यकाल के साढे चार साल में खाने-पीने और कपडे बदलने के अलावा कुछ नहीं किया उस कारण गृह मंत्रालय बिन मां का हो गया है। ऐसी स्थिति में चिदंबरम कोई कमाल कर दिखाये ऐसी उम्मीद रखना भी बहुत ज्यादा है। एक तरह से देखें तो मनमोहन सिंह ने उन्हें जलता हुआ घर सौंपा है। और इस जलते हुए घर की आग बुझाने में चिदंबरम खुद जल जाये ऐसी संभावना ज्यादा है। चूंकि इसमें कोई शक नहीं कि शिवराज पाटिल जैसे निकम्मे गृहमंत्री से तो चिदंबरम ज्यादा बेहतर गृहमंत्री साबित होंगे। लेकिन उनसे ज्यादा उम्मीद रखना नाइन्साफी है। जिस व्यक्ति ने पूरी जिंदगी अर्थशास्त्र की पोथियों के गुजारी हो वह आतंकवाद से मुकाबला कर पायेगा ? लेकिन कभी-कभार ऐसा भी देखा गया है कि जिससे हमें कोई उम्मीद नहीं होती वह नामुमकिन काम कर जाते है और चिदंबरम भी ऐसा कुछ कर दिखाए ऐसी उम्मीद हम रखते है।
शिवराज पाटिल को घर भेजना सही कदम है लेकिन इसके लिए मनमोहन सिंह या कांग्रेस को शाबाशी देना सही नहीं। शिवराज पाटिल को घर भेजने में मनमोहन सिंह ने बहुत देर कर दी और उसकी बडी किमत इस देश के लोगों ने चुकाई है। मैं मीन मेख नहीं निकाल रही हूं और अब गडे हुए मुरदों को उखाडने से कोई फायदा भी नहीं है। क्योंकि इससे दर्द के सिवा हमें कुछ नहीं मिलनेवाला। लेकिन इसका उल्लेख इसलिए जरुरी है कि यह मनमोहन की ढुलमुल नीति का प्रतिबिंब है। शिवराज पाटिल को बहुत पहेले ही घर भेज देना चाहिए था लेकिन मनमोहन सिंह यह नहीं कर सके और अभी भी वे वही रास्ता और नीति अपना रहे है। आतंकवादियों ने हमारे देश का नाक काट दिया बावजूद इसके वे वही ढुलमुल रणनीति चला रहे है।
मुंबई के हमले के बाद शिवराज पाटिल को पद से हटाने या अन्य दो-चार अधिकारियों को या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को हटाने की जरुरत नहीं लेकिन आतंकवादियों को उनकी नानी याद आ जाये ऐसा कुछ करना चाहिए और मनमोहन सिंह से यही नहीं हो पा रहा। आतंकवादी हमारी ओर आंख उठाने की हिम्मत ना करे ऐसा कुछ करने के बजाय मनमोहन सिंह अभी गृहमंत्री बदलने और ऐसे कुछेक निर्णय लेकर संतोष मान रहे है। मनमोहन सिंह को फिलहाल कुछ ओर करने के बजाय आतंकवादियों को पालने वाले पाकिस्तान को मुंहतोड जवाब देना चाहिए जिससे पाकिस्तान हमारे देश को तबाह करने के लिए हजार बार सोचने को मजबूर हो जाये। और इसके लिए हिम्मत की जरुरत होती है। जो मनमोहन सरकार में दिखाई नहीं दे रही।
अभी के हालातों को देखते हुए पाकिस्तान द्वारा हजम किये काश्मीर पर हमला करने के अलावा ओर कोई विकल्प दिखाई नहीं देता। लेकिन यही समझ में नहीं आ रहा है कि मनमोहन सरकार किस सोच में डूबी हुई है। हमारे शासक के कानों तक शायद हम आम लोगों की आवाज ना पहुंचे लेकिन गांधी खानदान के लोगों की बात भी उनके कानों तक नहीं पहुच रही। मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के निवेदन कुछ इस प्रकार है। राहुल ने साफ शब्दों में कहा है कि इस आतंकवादी हमले में पाकिस्तान या अन्य किसी भी देश का हाथ हो, भारत को तमाचे का जवाब तमाचे से देना चाहिए। और इसमें प्रियंका दो कदम आगे है। उन्होंने कहा कि आज उनकी दादी इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री होती और इस तरह आतंकवादी हमला होता तो इन्दिरा ने उन्हें बहादुरी से जवाब दिया होता। राहुल और प्रियंका सार्वजनिक जीवन में है और सत्ता पे उनकी सरकार है। इसलिए उन्हें अपनी जुबान को लगाम देना पडता है लेकिन फिर भी उन्होंने थोडे से शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है। राहुल और प्रियंका जो कुछ भी सोच रहे है यह उनकी सोच से ज्यादा जन आक्रोश है और यह बात मनमोहन सिंह की समझ में नहीं आ रहा। आज सामान्य कांग्रेसी भी मनमोहन सिंह की इस ढुलमुल नीति से नाखुश है और यह कहने लगे है कि यह आतंकवाद से लडने के चिह्न नहीं है। मनमोहन सिंह यह सब सुनने के बावजूद ना समझे तो उनके जैसा कमजोर प्रधानमंत्री ओर कोई नहीं।
मनमोहन सिंह नहीं समझते तो कोई बात नहीं लेकिन कांग्रेस में ओर भी समझदार लोग मौजूद है उन्हें मनमोहन सिंह को समझाना चाहिए और ना समझे तो उन्हें घर का रास्ता दिखा देना चाहिए और जिसका खून खौल उठा हो और जो आतंकवादी को मुंहतोड जवाब दे सके ऐसे अन्य किसी को यह जिम्मेदारी सौंप देनी चाहिए। और यह इस देश का और कांग्रेस का अस्तित्व के लिए बेहद जरुरी है। राजनैतिक तौर पर कांग्रेस को इस निर्णय से जितना फायदा होगा वह अन्य किसी निर्णय से नहीं हो सकता। राजनैतिक लाभ के लिए मैं किसी पर आक्रमण करने की तरफदारी नहीं कर रही हूं लेकिन इस देश को आतंक के चंगुल से मुक्त कराने के लिए यह बेहद जरुरी है और अगर इससे कांग्रेस को फायदा पहुंचता है तो यह गलत भी नहीं है। पहली बात यह कि लोकसभा चुनाव में छ माह से भी कम समय बचा है और आतंकवाद का मुद्दा जिस तरह सामने खडा है उसे देखते हुए कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड सकता है। और दूसरी बात यह कि जिस तरह विपक्षी एवं अन्य लोगों ने कांग्रेस को आतंकवाद के लिए जिम्मेदार मुद्दे पर घेरा है उसे देखते हुए इसमें कुछ गलत भी नहीं क्योंकि जो सरकार उनकी हिफाजत करने में नाकाम रही हो और देश का दुश्मन कौन यह पता चलने के बावजूद हाथ पर हाथ धरे बैठी हो उसे लोग दोबारा क्यों चुनें ? लोगों को भी भरोसा दिलाना चाहिए कि इस सरकार में उनकी हिफाजत की ताकत है। फिलहाल इतना ही कहना चाहूंगी कि अभी जो स्थिति पैदा हुई है उसके चलते कांग्रेस को अपना इमेज बचाने के बजाय देश को बचाने के बारे में सोचना चाहिए।
Best of Luck Mr. Singh
जय हिंद

राजनीतिक दलों को वोट की चिंता है, देश की नहीं

मुंबई पर हुए आतंकी हमले पर बहुत कुछ लिखा गया है... बहुत कुछ सुना गया है। हमारा देश आतंकवादियों के लिए ‘खाला का घर’ हो गया है। तभी तो वे अपनी मर्जी से यहां आकर अपने नापाक इरादों पर अमल कर जाते है। हम एक अत्यंत लचर आंतरिक सुरक्षा तंत्र के साथ आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब देख रहे है। हमारे नाकारा रहनुमाओं ने देश को फिर से शर्मसार कर दिया। मुंबई के आतंकी हमलों ने देश के सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया तंत्र के कामकाजों की पोल खोलकर रख दी है। हर आतंकी हमले के बाद अगली बार कडा रुख अपनाने का रटा रटाया जुमला फेंका जाता रहा है। आतंक से लडने के बजाय नेता फिर एक दूसरे पर कीचड उछालने में मसरुफ हो गये हैं। इन पोची बातों को सुनते-सुनते देश ने पिछले आठ महीनों में पैंसठ से ज्यादा हमले अपने सीने पर झेले है।
बयानबाजी के तीर एक दूसरे पर छोडने वाले नेताओं के लिए यह हमला वोटों के खजाने से ज्यादा कुछ नहीं। आतंकवाद के खिलाफ एकता की बस बातें हैं। एकजुटता प्रदर्शित करने को पार्टियां साथ नहीं आती। एकजुटता होनी चाहिए, कहने से आगे इनकी गाडी बढती ही नहीं है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इस दिशा में एकजुटता दिखाने के लिए कोई ठोस पहल करने की जगह, सरकार को घेरने के लिए अनुकूल समय तलाश रही है। राजनीतिक दलों को वोट की चिंता है देश की नहीं। देश की चिंता होती तो आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की कोशिश की बात ही नहीं होती। यह तो अपने आप होता। हमारी पूरी राजनीतिक जमात किस हद तक खोखली हो गई है, इसे रात के अंधेरे में भी साफ देखा जा सकता है।
सुना है कि मुसीबत के वक्त ही अपने पराए की पहचान होती है। भारत मां को तो निश्चित ही अपने इन लाडले सपूतों (नेताओं) की करतूतों पर शर्मिंदा होना पडा होगा। आतंकवादियों के गोला बारुद ने जितने जख्म नहीं दिए उससे ज्यादा तो इन कमजर्फों की कारगुजारियों ने सीना छलनी कर दिया।
ऐसा लगता है देश के सड गल चुके सिस्टम को बदलने के लिए अब लोगों को ही सडकों पर उतरना पडेगा। आतंकी हमारे सुरक्षा व्यवस्था की किरकिरी उडा रहे है जिससे लोगों का मनोबल टूट रहा है। लोग महसूस करने लगे हैं कि उनकी सरकार उनकी रक्षा करने में सक्षम नहीं है और यही आतंकवाद की सफलता है।
जो लोग (आतंकवादी) ‘बोट’ से आये थे उनसे ज्यादा खतरनाक तो वे लोग (नेता) है जो ‘वोट’ से आते है (चुने जाते है)। ऐसे नाजुक पल में भी नेताओं का महाभारत चल रहा है जो इस देश की लाचारी है।
मुंबई आतंक से मुक्त तो हो गया लेकिन सवाल यह है कि अब इसके बाद क्या ? इस मुक्ति के लिए हमने बहुत बडी किमत चुकाई है। हमारे जांबाज जवान, २०० निर्दोष भारतीय और करोडों का नुकसान। आतंकियों ने हमारे देश के स्वाभिमान को आत्मगौरव को चकनाचूर कर दिया। यह मुठ्ठीभर आतंकी भारत के १२० करोड लोगों के दिलों में दहशत पैदा कर गये। और हमें याद दिला गए कि हमारे पास रिढ की हड्डी नहीं है। इन आतंकियों को मार गिराने के बाद हम विजयोत्सव मना रहे है लेकिन क्या हम इसके काबिल है ? नहीं, क्योंकि हम नहीं वे जीते है। यह हर भारतीय के माथे पर कलंक है और इस कलंक को मिटाने के लिए जरुरी है आक्रमण। यहां बात पाकिस्तान ने हजम किए काश्मीर की हो रही है।
मुंबई में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान का हाथ था। यह हमला करने वाले भी पाकिस्तानी थे। इन आतंकियों ने पाकिस्तान द्वारा हजम किए काश्मीर में प्रशिक्षण लिया। यह हमला जिस तरह से किया गया उसे देखते यह पांच या पंद्रह लोगों का काम नहीं है। यह बात कुछ हजम नहीं हुई कि पाकिस्तानी आतंकी समुद्र मार्ग से भारी मात्रा में विस्फोटक लेकर भारत में घुसे और किसी को कानो कान खबर तक नहीं हुई। पाकिस्तान के सहयोग के बिना इन आतंकियों ने हमें डरा दिया यह संभव नहीं। जिसे देखते हुए साफ है कि यह हमला पाकिस्तान ने ही करवाया है। इसलिए इस समय भारत को कुछ भी न सोचते हुए ‘अभी नहीं वो कभी नहीं’ का रुख अपनाना चाहिए। वैसे देखा जाए तो आतंकवाद के सामने लडने में हमारे शासक निक्कमे साबित हुए है लेकिन मनमोहन सिंह का रेकर्ड सबसे खराब है। देश में पिछले एक साल में आतंकवाद खूब फूला-फला है। आतंकवाद हमारे लिए नया विषय नहीं है लेकिन अब सहनशीलता की सारे हदें समाप्त हो गई है। आतंकवादी भी हमारी सहनशीलता की स्थिति भांप गए है।
यह समय मनमोहन सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं। पिछले साढे चार सालों में मनमोहन सरकार ने आतंकवाद के सामने घुटने टेकने के अलावा कुछ नहीं किया है। अगर इस समय वे अपने फर्ज से चुक गये तो इतिहास उन्हें कभी भी माफ नहीं करेगा। इस देश के १२० करोड लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी मनमोहन सरकार की है। और यह समय उस जिम्मेदारी को निभाने का है। जंग किसी समस्या का हल नहीं है लेकिन अगर कोई हमें बार बार ललकारे तो इसके अलावा कोई मार्ग नहीं बचता। पाकिस्तान वही कर रहा है और इस समय भारत को उसका मुंहतोड जवाब देना होगा। भारत पाकिस्तान पर हमला बोलेगा तो पाकिस्तान चुप्पी नहीं साध सकता इसके कारण काफी समस्याओं से मुकाबला करना पडेगा। और ऐसा न हो इसीलिए भारत को पाकिस्तान पर हमला करने के बजाय पाकिस्तान ने जिस काश्मीर को हजम कर लिया है वहीं जाकर हमला करना चाहिए। काश्मीर पाकिस्तान के बाप की जागिर नहीं है अगर पाकिस्तान ऐसा समझता है तो उसकी अकड को ठिकाने लाने की जरुरत है। भारतीय एयरफोर्स पाकिस्तान द्वारा हजम किए गए काश्मीर में घुसकर बमबारी करेगा उसके साथ ही पाकिस्तान और उसके दम पर उछलते आतंकवादी हरामजादों को भी एक मेसेज मिल जायेगा कि भारतीय शासकों ने अपने हाथों में चुडियां नहीं पहनी है। अगर वे भारत में घुसकर आतंक फैला सकते है तो भारत भी उनके घरों में घुसकर उन्हें सबक सिखाने की ताकत रखता है। भारत यह मर्दानगी बताये यह जरुरी है। देश के लोग जिस डर के बीच जी रहे है, सहमे हुए है और आतंकवादी का नाम सुनते ही उनके रौंगटे खडे हो जाते है उनके मनोबल को मजबूत करने और आत्मविश्वास जगाने के लिए ऐसा करना जरुरी है।
भारत हमला करेगा तो अन्य लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता करने की भी जरुरत नहीं है। दूसरे देशों पर आतंकवादी हमले होते है तो क्या वे हमें पूछने आते है ? अलकायदा ने वल्ड ट्रेड सेन्टर पर हमला किया है ऐसी आशंका के चलते ही अमरिका ने अफघानिस्तान को तहस-नहस कर दिया था और आज भी अमरिका वही कर रही है। अलकायदा के आतंकी पाकिस्तान में पनाह ले रहे है ऐसी आशंका के चलते अमरिका पाकिस्तान में घुसकर बमबारी कर आई, पाकिस्तान में मिसाइल फेंक आई। क्या कर लिया पाकिस्तान ने। और जो करना हो करे उसके लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए। यह रोज-ब-रोज कुत्ते की मौत मरने से तो अच्छा है एक बार यह जंग हो ही जाए। अंकुश रेखा पार और काश्मीर पर कब्जा।
मनमोहन सरकार के लिए यह इतिहास बनाने का समय है। नेहरु से लेकर वाजपेयी तक के प्रधानमंत्रियों ने की हुई गलती को सुधारने का मौका है। खास कर पाकिस्तानी आतंकवाद ने जिन निर्दोष भारतीयों की जान ली है उन तमाम को सच्ची श्रध्धांजलि देने का समय है। आज हम इन शहीदों की शहादत से नहीं सीखेंगे तो हमारी आजादी बेकार हो जायेगी। दिनकर जी ने बहुत पहले कहा था, क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो।
समझे !
जय हिंद

दिखावा करना पाप है राज !

सहनशील भारत... सार्वभौम भारत... धर्मनिरपेक्ष भारत !
जिसने जो चाहा कर के चला गया। मुंबई आज पहली बार नहीं दहली है और ना ही देश का कोई हिस्सा अब दहशतगर्द से अछूता है।
अब क्यों शतुरमुर्ग बने बैठे हो राज ? क्यों चुप्पी साध ली तुम्हारी महाराष्ट्रवादिता ने ? मेरे सवालों का जवाब दो राज ! आज तुम्हारी ‘आमची मुंबई’ बम-बारूद से तहस-नहस हो गई है। पूरी मुंबई अवाक बन गई है इस रक्तपात से। चारों ओर बस खून ही खून है यहां। मरने वालों के परिवारजनों के करूण विलाप की चीखों पर आतंकवादी अट्टहास कर रहे होंगे। जिस तरह तुमने बिहार से आये छात्रों को सडकों पर दौडा-दौडा कर मारा था। किसी ओर प्रांत के लोगों से नफरत के नाम पर कई लोगों की जानें तुमने पिछले दिनों ली है और मरनेवालों के परिवारजनों के करूण विलाप पर तुमने भी ऐसा ही अट्टहास किया होगा ना !
महाराष्ट्र के नाम पर लोगों की कोमल भावनाओं को बहकाकर सत्ता की तमाम सीढियां नापी है ना राज! कभी तो देश के असली काम आओ भाई। इस देश में सिर्फ तुम ही नहीं यहां के सारे नेताओं ने पिछले साठ सालों में नफरत का बीज रोपने के अलावा कुछ नहीं किया। राज! तुम तो जब-तब अपनी गर्जना से देश के अखबारों की सुर्खियों में छाते रहते हो ना! ऐसे वक्त में कहां छिप गये हो। अभी महाराष्ट्र को तुम्हारी और सिर्फ तुम्हारी ही जरूरत है।
हमारे मिलेट्री के जवान में ज्यादातर उत्तर भारतीय है। आज इन जवानों के कारण ही मुंबई आतंक से मुक्त हो पाया है। इन्होंने अपनी जान पर खेलकर इस मुंबई को बचाया है राज। ये जवान तुम्हारी तरह नहीं सोचते। इनके लिए देश का हर हिस्सा इनका अपना है। ये देश को चाहने वाले है सत्ता को नहीं। इसलिए आज इनकी बदौलत मुंबई फिर से चलने लगी है। तुम्हें तो इनका शुक्रगुजार होना चाहिए, है ना! सलाम करो उन जवानों को राज !
जय हिंद

सोमवार, 10 नवंबर 2008

राहुल राज एन्काउन्टर केस : आमची पुलिस ?

बेस्ट एन्काउन्टर में मारे गए अपहरणकर्ता राहुल राज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसको काफी करीब से गोली मारने की आशंका जताई जा रही है। इस रिपोर्ट की वजह से इस केस में जबरदस्त मोड आ गया है। जे जे अस्पताल में फोरेंसिक मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर डॉ. बीजी चिकलकर के मुताबिक राहुल के सिर में लगी गोली के पास से गन पाउडर के निशान मिले है, जो इशारा करते है कि उसे नजदीक से गोली मारी गई। राहुल के शरीर पर गोली के पांच निशान थे और इसमें से चार गोली राहुल के शरीर के आर-पार निकल गई थी। पुलिस को राहुल के शरीर में से सिर्फ एक गोली मिली है इसका मतलब भी यही होता है कि पुलिस ने राहुल को एकदम करीब से गोली मारी थी। पुलिस राहुल से उसका पिस्तोल ले सकती थी इतने करीब होने के बावजूद उसे राहुल को पकडने में नहीं बल्कि उसे एन्काउन्टर कर वाह-वाही लुटने में दिलचस्पी थी। पोस्टमार्टम के इस रिपोर्ट ने मुंबई पुलिस का फांडा फोड दिया है।
अब कुछ राजनेताओं की बात करते है। मुंबई पुलिस ने यह एन्काउन्टर किया उसके बाद महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर.आर.पाटिल बहुत जोश में थे। उन्होंने मुंबई पुलिस की तारीफ में कसिदा पढने में कोई कसर नहीं छोडी। उन्होंने ऐसी घोषणा भी कर दी थी कि राहुल राज पागल था और कोई पागल इस तरह लोगों को परेशान करेगा तो उसका यही अंजाम होगा। राहुल का एन्काउन्टर सही है या गलत इस बारे में फैसला करने के लिए वह खुद ही अंतिम सत्ता पर है इस तरह पाटिल ने यह बात कह अपनी बेवकूफी को साबित किया है। यह बात ओर है कि एन्काउन्टर के एक हफ्ते बाद वे ठंडे हो गये है और महाराष्ट्र कैबिनेट बैठक में उन्होंने गुलांट मार कर कह दिया कि उन्होंने गोली का जवाब गोली से मिलेगा यह डायलोग आतंकवादियों के लिए कही थी, राहुल राज जैसे लडकों के लिए नहीं। पाटिल का यह ह्र्दय परिवर्तन क्यों हुआ यह समझना आसान है।
केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है और यह सरकार लालू जैसे लोगों के कारण टिकी हुई है। राहुल राज का एन्काउन्टर हुआ इसलिए लालू ने अपने तमाम सांसदों और विधायकों का इस्तीफा देने की घोषणा की इसके कारण कांग्रेसियों में भगदड मच गई है और वे लालू को मनाने में लग गये है। लालू को मनाने हेतु केन्द्र सरकार ने पाटिल को सूई चुभोई है और इस कारण पाटिल ऐसी समझदारीभरी बातें कर रहे है।
राहुल राज के एन्काउन्टर केस में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है और अब क्या करना है यह केन्द्र सरकार के हाथ में है। राहुल का एन्काउन्टर सही था या गलत इस बात को एक ओर रख रखते है। अब बात कांग्रेस की नीति पर आकर रुकती है। गुजरात में पुलिस ने शोहराबुद्दीन नामक एक गेंगस्टर को एन्काउन्टर में उडा दिया और यह एन्काउन्टर नकली था ऐसा बाहर आने के बाद कांग्रेस ने इस मामले समग्र देश में हल्ला मचा दिया और इस मामले गुजरात की मोदी सरकार को हटाने की मांग की।
कांग्रेस ने सही किया या गलत इसकी चर्चा यहां अप्रस्तुत है क्योंकि यह नीति का मामला है और कांग्रेस को अपनी नीति तय करने का पूरा हक है। सवाल यह है कि कांग्रेस वही नीति राहुल राज एन्काउन्टर केस में लागू करती है या नहीं ? शोहराबुद्दीन गेंगस्टर था तो भी उसे मारने का पुलिस को कोई हक नहीं था ऐसा कहने वाले कांग्रेसी नेता राहुल राज नामक एक निर्दोष युवक के एन्काउन्टर के मामले भी यही बात करते है या नहीं ? केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की सरकार है। उनकी ही सरकार के गृहमंत्री ने इस एन्काउन्टर को सही बताया था। देखना यह है कि कांग्रेस भाजपा सरकार के लिए अलग नीति और अपनी सरकार के लिए अलग नीति रखती है या सभी को एक ही तराजू से तोलेगी। मेरी आवाज इस देश की जनता की आवाज है जो इन ऊंचे पदों पर बैठे लोगों से इस सवाल का जवाब चाहती है।
जय हिंद

शनिवार, 1 नवंबर 2008

करे कोई, भरे कोई

देखिए, हमारे देश के राजनेताओं को और जनता को। ये राजनेता अपने मतलब के लिए जनता को बहकाते है और ये बेवकूफ लोग उनकी बातों को मानकर भावुक बन जाते है। राजनेता तो आग लगाकर अपने-अपने महलों में आराम से सो जाते है और उनके इस लोमडियापन की किंमत बेचारी जनता चुकाती है। बात है गत सोमवार यानि २७ अक्टूबर की। इस दिन राहुल राज नामक एक बिहारी लडका मुठभेड में मारा गया। यह घटना मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने दस महिने पहले सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के सामने जो गाली-गलौच की उसका परिणाम है। राज ठाकरे ने अपनी वोट बैंक को मजबूत बनाने के चक्कर में महाराष्ट्रवाद का झंडा लेकर उत्तर भारतीयों को गालियां देना शुरु किया और उनके पीछे-पीछे महाराष्ट्रीयनों का एक समूह भी जुड गया। शुरुआत में यह हमला मर्यादित था और उस वक्त एकाद हफ्ते बाद महाराष्ट्र पुलिस ने राज ठाकरे को अंदर कर दिया बाद में राज ठंडा हो गया तब ऐसा लग रहा था कि मामला शांत हो जायेगा लेकिन वहीं रेलवे बोर्ड की परीक्षा देने आए बिहारियों पर हमला हुआ और ज्वालामुखी भडक उठी। इस हमले के बाद चुप्पी साधे बैठे बिहारी भी मैदान में आ गये और उसके बाद ज्वालामुखी ने विराट स्वरुप ले लिया उसे देखते हुए लगता है कि यह मामला अब जल्द शांत होनेवाला नहीं है।
इन उत्तर भारतीयों के खिलाफ महाराष्ट्रीयनों की खींचतान में २७ अक्टूबर को जो हुआ यह हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। रेलवे बोर्ड की परीक्षा देने आये बिहारियों पर हमला हुआ उसके बाद बिहारियों का खून खौल उठा है और अभी वे जोश में है। इस जोश में राहुल राज नामक एक बिहारी विद्यार्थी पिस्तोल लेकर मुंबई आया। गत २६ अक्टूबर को वह पिस्तोल लेकर कुर्ला पहुंचा और बेस्ट की डबल डेकर बस में चढा। बस में कंडक्टर ने टिकट मांगी और उसके साथ ही राहुल जोश में आ गया और उसने कंडक्टर के सामने पिस्तोल ताक दी। पिस्तोल देख कंडक्टर भडक उठा और लोगों का डरना स्वाभाविक था।
मिनटों में पूरी बस खाली हो गई और राहुल अकेला बस में बैठा रहा। इस तमाशे को देखने के लिए बस के इर्द-गिर्द लोगों की भीड जमने लगी और भीड देख राहुल जोश में आ गया। उसने राज ठाकरे के खिलाफ नारेबाजी शुरु की और राज ठाकरे को जो संदेश देना चाहता था उसकी घोषणा कर दी। हमारे यहां सामान्य तौर पर पुलिस ऐसी कोई वारदात के बाद आती है लेकिन यहां वक्त पर आ गई और पुलिस ने राहुल को चेतावनी दी। चूंकि राहुल ने चेतावनी नहीं मानी और सामने गोली चलाई इसलिए पुलिस को गोली चलानी पडी जिसमें राहुल की मौत हो गई। यह कहानी पुलिस के मुताबिक है। लेकिन राहुल के लिए जिन लोगों के दिल में हमदर्दी है वे कुछ ओर ही कह रहे है। उनके मुताबिक राहुल ने किसी को चोट नहीं पहुंचाया और ना ही उसका इरादा किसी को मारने का था। वह तो सिर्फ अपना विरोध दिखाना चाहता था और इसलिए उसने यह अनोखा रास्ता चुना लेकिन मुंबई पुलिस में भी सभी राज ठाकरे जैसी सोचवाले है इसलिए एक बिहारी को गोली मारने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलता सो उन्होंने राहुल को गोली मार दी। पुलिस चाहती तो राहुल को पकड सकती थी लेकिन पुलिस को राहुल को पकडने में नहीं मारने में दिलचस्पी थी इसलिए उन्होंने उसे पकडने की कोशिश तक नहीं की। ऐसा राहुल के लिए जिन्हें हमदर्दी है वे लोग कह रहे है और यह गलत भी नहीं है। टीवी पर इस वारदात का जो क्लिपिंग्स दिखाया गया है उसे देखते हुए लगता है कि पुलिस ने थोडी इन्सानियत दिखाकर बल के बजाय अक्ल से काम लिया होता तो राहुल मारा न जाता। राहुल बस में अकेला था और वह कोई आतंकवादी नहीं था कि गोली चलाये और किसी को भी मौत के घाट उतार दे। उसके पास पिस्तोल थी लेकिन उसे पिस्तोल चलाना आता था या नहीं यह भी एक सवाल है। ऐसी स्थिति में पुलिस उसे घेरकर अक्ल से काम ले सकती थी। राहुल के लिए जिन्हें हमदर्दी है वे लोग इस तरह सही है।
एक जवान लडका इस तरह छोटे से अपराध के लिए पुलिस की गोली खाकर बेमौत मारा जाये यह बडे शर्म की बात तो है लेकिन उससे ज्यादा तो हमारी आंखे खोलने वाली है। राज ठाकरे या दूसरा कोई भी राजनेता अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए कोई भी तमाशा खडा करे और उनके सामने राज जैसे नेता अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करे लेकिन सवाल यह है कि इनकी वजह से आम जनता को भडकने की क्या जरुरत है? पुलिस इस मामले निश्चित ही अक्ल से काम ले सकती थी लेकिन बजाय इसके अगर राहुल पिस्तोल लेकर ही ना गया होता और ना ही यह तमाशा खडा करता और ना ही उसकी जान जाती। राहुल ने नेताओं के बहकावे में आकर हीरो बनने की कोशिश की और उसकी किंमत उसे जान गंवाकर चुकानी पडी। इसके लिए किसीको दोष देना भी ठीक नहीं है। राज ठाकरे जो तमाशा कर रहे है वह एकदम बकवास है उसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। लेकिन राज की इस नौटंकी को बंद करने के लिए महाराष्ट्र सरकार बैठी है और उससे जो बन सकता है वह कर रही है। राहुल या अन्य किसीको राज ठाकरे को संदेश देने या पाठ पढाने के लिए मुंबई आने की क्या जरुरत है? राज को संदेश देना है तो उसके लिए दूसरे हजार रास्ते है लेकिन हाथ में पिस्तोल लेकर निकल पडो और लोगों को डराओ यह रास्ता ठीक नहीं। राज ठाकरे और उनके गुंडे यही काम करते है। और उनके सामने आप भी वहीं करोगे तो उनमें और आप में क्या फर्क रह जायेगा? गुंडागर्दी कर किसीकी हमदर्दी नहीं ली जा सकती और ना ही विरोध प्रदर्शित होता है।
मुंबई में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार है। गृहमंत्री आर.आर.पाटिल ने इस मुठभेड के बाद साफ शब्दों में कहा है कि पुलिस ने जो किया बिल्कुल सही है। कांग्रेस इस मामले क्या रवैया अपनाती है यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। गुजरात में पुलिस ने आतंकवादियों के साथ संलग्न शोहराबुद्दीन नामक एक गेंगस्टर को उडा दिया उस मामले पर कांग्रेस ने पूरे देश में उधम मचा दिया। मुंबई में पुलिस ने जिसे उडाया वह आतंकवादी भी नहीं है ना ही गेंगस्टर है। पुलिस उसे आसानी से पकड सकती थी। लेकिन पुलिस ने उसे उडा दिया और उनकी ही सरकार के गृहमंत्री उसका खुलेआम बचाव कर रहे है। शोहराबुद्दीन के एन्काउन्टर के मामले में गुजरात सरकार का इस्तीफा मांगने वाली कांग्रेस के लिए यह अग्नि परीक्षा की घडी है।
इस मामले राजनीति शुरु हो गई है। एक ओर एनसीपी है तो दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की पार्टी जनता दल (यु) है। बिहार की दूसरी पार्टियों को न चाहते हुए भी नीतिश के साथ रहना पडेगा क्योंकि सवाल वोट बैंक का है। चूंकि इस घटनाक्रम से सबसे ज्यादा खुश राज ठाकरे है। क्योंकि उन्होंने जिस मकसद से उत्तर भारतीयों के विरोध में विवाद छेडा था वह मकसद आखिरकार सफल होता दिख रहा है। राज को और कितना खुश करना है यह उत्तर भारतीयों और महाष्ट्रीयनों के हाथ में है।
जय हिंद