बुधवार, 30 नवंबर 2016

गुजरात में कमजोर शासक और बहुत ही कमजोर विपक्ष

शासक के लिए मुश्किल भरे दिन थे लेकिन कांग्रेस बाजी नहीं जीत सकी। गुजरात के स्थानिक चुनावों में कांग्रेस पूरी तरह से साफ हो गई। जाहिर है कि पिछले तीन सालों से गुजरात मोदी के प्रभाव से दूर था और कम समय में गुजरात ने दो मुख्यमंत्री देखें। पार्टी में अभी भी लडाई जारी है...दूसरी चुनौतियां भी मुंह फाडे खडी है। इतना कम था कि नोटबंदी जैसे केन्द्र के निर्णय से आम जनता को परेशानी झेलनी पडी। ऐसे मुश्किलों से भरे दिन में विपक्ष को चाहिए कि वे शासक पक्ष पर हावी हो जायें। लेकिन कांग्रेस लोगों में विश्वास नहीं जगा पाई। कमाल की बात तो यह है कि इतनी बार मुंह की खाने के बाद भी जस-के-तस रहे है। गुजरात के कांग्रेसी नेता सिर्फ गांधीनगर में बैठे-बैठे केन्द्र को कोसते रहते है। उनके पास ओर क्या उम्मीद की जा सकती है भला ! गुजरात में भाजपा का जय-जयकार हुआ... भाजपा सरकार जनहित के कदम उठाने में विफल रही है। विपक्ष की कमजोरी का फायदा उठाकर भाजपा मजे ले रही है। अभी भी वक्त है कि, कांग्रेस आक्रमकता के साथ जनता के प्रश्नों पर अपनी लडाई से जनविश्वास को केन्द्रित करें। सिर्फ बयानबाजी से कांग्रेसी नेताओं ने अपने परिवारजनों के वोट भी गवा दिये है। ऐसी स्थिति में भाजपा को बहुत बडा मौका मिला है। विपक्ष की कमजोरी से मिलने वाला गौरव गौरव नहीं है।
जय हिंद।

मंगलवार, 29 नवंबर 2016

नोटबंदी से राजनीतिज्ञों की उड़ चुकी है नींद

नोटबंदी का फायदा उठानेवाले नीतिशकुमार और अमरसिंघ की बात करते है। देश में नोटबंदी मामले एक जबरदस्त खेल शुरु हुआ है। इस मामले को लेकर राजनेता आपस में लडने भी लगे है। भारत बंद ऐलान के परिणाम शुन्य ही रहे और इसलिए विपक्षी नेताओं का दिमाग काम नहीं कर रहा। भारत खुला रहा, विपक्षों ने अपना आक्रोश व्यक्त किया। अब समझना यह है कि यह आक्रोश सरकार के सामने था या जनता के सामने? सरकार तो नोटबंदी के मामले डटी रही है और विपक्ष को जनता का सहयोग नहीं मिल रहा।
नोटबंदी से आमजन या अर्थतंत्र को फायदा हो तब ठीक है लेकिन कईयों को इसके फायदे तत्काल मिलने भी लगे है। मोदी के कट्टर विरोधी ऐसे नीतिशकुमार ने नोटबंदी से इतना बडा फायदा उठाया कि, लालु यादव जैसे नेताओं की नींद उड गई। बड आश्चर्य के साथ नीतिश ने मोदी के इस फैसले को सराहा। 14 दिन में नीतिश ने चार बार सार्वजनिक रुप से मोदी सरकार को सराहा। विपक्ष के विरोध कार्यक्रम से भी कोसों दूर रहे। अमित शाह ने नीतिश कुमार के इस फैसले का स्वागत किया है।
इस खेल को देखकर लालु यादव की नींद उड चुकी है। नीतिश सरकार लालु यादव के समर्थन से चलती है। लालु खानदान नीतिश को काफी परेशान करती रहती है, लेकिन नीतिश ने नोटबंदी की आड में लालु यादव को चैन से सोने नहीं दिया। कल लालु दिल्ही गये...... सोनिया गांधी के शरण में !! सोनिया के समर्थन से नीतिश ने सरकार बनाई है और मोदी के नोटबंदी से सहमत है ! यह स्थिति राजद-कांग्रेस के लिए असह्य है, लेकिन समर्थन वापिस लेने की हिम्मत भी नहीं है। अगर नीतिश भाजपा के समर्थन से सरकार बना ले तो लालु-सोनिया के पास कुछ काम नहीं बचता।
नोटबंदी की आड का फायदा उठाने में नीतिश कामयाब हो गये। वही दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के अमरसिंघ ने भी नोटबंदी के मुद्दे का जमकर फायदा उठाया। अखिलेश को अमरसिंह बिलकुल भी पसंद नहीं है। हाल ही में इस मुद्दे पर यादव खानदान में यादवास्थली जमी थी। नोटबंदी के सामने समाजवादी पार्टी गहरे जल में बैठी हुई है, लेकिन अमरसिंघ नीतिश बने.... और मोदी की खुल्लेआम सराहना की.... इतनी आक्रमकता के साथ तरफदारी की कि मोदी के लिए राज्यसभा के सांसद पद से इस्तीफा देने को भी तैयार हो गए !
अमरसिंघ के अति आक्रमक रवैये से अखिलेश-मुलायम की नींद उड गई है। अमरसिंघ के कट्टर विरोधी माने जाते अखिलेश खुद अमरसिंघ को समझाने गए..... और अमर भाई हंस दिए !
लालु-मुलायम दोनों समधी है, राजनीतिज्ञ भी है, लेकिन नोटबंदी की आड में खेले गए इस नाटक में दोनों एक जोकर बनकर रह गये है।
जय हिंद।

सोमवार, 28 नवंबर 2016

बाजी खेले बिना ही रफुचक्कर हो गए गुजरात के कांग्रेसी नेता !

गुजरात कांग्रेस भारत बंद की बाजी खेलने तो गई लेकिन मात्र जोकर ही साबित हुई। गुजरात के कांग्रेसी नेताओं में रणनीति, आत्मविश्वास, नेतागीरी और मुद्दों का अभाव हंमेशा से ही रहा है।
जनता की नब्ज़ को पहचानना और मुदों को परखना यही नेतागीरी के लक्षण माने जाते है, लेकिन अफसोस यह है कि, कांग्रेसी नेताओं में इन लक्षणों का अकाल सा पडा है। बंद की बाजी का जुआं खेलकर गुजरात कांग्रेस हास्यास्पद बन गई है।
नोटबंदी के मामले जनता को हो रही तकलीफों के विरोध में कांग्रेस ने बंद का ऐलान दिया था। प्रदेश प्रमुख भरतसिंह सोलंकी ने तीन दिन पहले यह साफ किया था कि, कांग्रेस सहित समग्र विपक्ष ने सोमवार को भारत बंद का एलान दिया है। जनता इस दिन ‘गुजरात बंद’ रखें ऐसी मेरी अपील है।
ऐसा लग रहा था कि सिर्फ बयानियां विरोध जतानेवाली कांग्रेस हरकत में आ गई हो। लेकिन बंद के अगले ही दिन जैसे पानी में बैठ गई। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने अपने हाथ ऊपर कर कहा कि, हम बंद के ऐलान के साथ नहीं है। गुजरात में भरतसिंह को अचानक ही जनहित याद आया, उन्होंने कहा कि, जनहित के मद्देनजर ऐलान स्थगित रखा गया है।
गुजरात में मोदीत्व का राज स्थापित हुआ तब से लेकर आज तक गुजरात में चार कांग्रेसीयों ने सिर्फ बयानबाजी से ही अपना विरोध जताया है और हास्यास्पद बनते रहे है। बंद के इस खेल में गुजरात कांग्रेस सिर्फ जोकर साबित हुई है।
केन्द्र सरकार के सामने विरोध करने के लिए विषय की कमी नहीं है। परसों ही जेल तोडकर पांच खुंखार आतंकवादी भाग गए। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने एकदम सामान्य बयान दिया है। संरक्षण प्रधान पर्रिकर बहादुरी भरे बयान करते है और नालायक सरहद में घुसकर भारत के शहीदो के मृतदेह के साथ छेडछाड करते है। यह घटना सरकार के लिए शर्मनाक है, लेकिन कांग्रेस कुछ बोलती ही नहीं। विरोध करने की हिम्मत भी होनी चाहिए, मौके पर तो कांग्रेसी नेता रफुचक्कर ही हो जाते है।
भारत बंद के मामले पार्टी की कमजोरी साफ तौर पर सामने आ गई है। बंद करवाने के लिए चल तो दिए लेकिन रणनीति की कमी थी। इस मुद्दे पर जनता की भावना सरकार की ओर है इसे समझे बिना कांग्रेसी नेता बंद का ऐलान लेकर मीडिया के सामने आये। ऐलान को वापिस लेना इस बात को दर्शाता है कि, यहां आत्मविश्वास की बडी कमी है। यह पुरा मामला इस बात की गवाही देता है कि कांग्रेसी नेता असफल हो गये है। नेताओं की इस रफु-चक्कर वृत्ति का कार्यकर्ताओं पर कैसा प्रभाव पड रहा है पता है? क्या करें, बडे अफसोस की बात यह है कि, गुजरात कांग्रेस को कोई कहनेवाला नहीं है ! गुजरात कांग्रेस में असफल नेताओं की फौज है और राष्ट्रीय कांग्रेस में महा-असफल बडे भाई बनकर बैठे हुए है। इसलिए हाल में इन जोकरों का ही साम्राज्य चल रहा है।
नोटबंदी के मामले विपक्ष में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिशकुमार ने दृष्टिकोण भांपकर लोगों की नब्ज पहचानकर शुरु से ही सरकार का साथ दिया। ममता जैसी चालाक नेता भी केजरीवाल के चक्कर में फंसकर हास्यास्पद बन गई है।
नोटबंदी से हो रही अव्यवस्था से लोग परेशान तो है ही, लेकिन कांग्रेस उनका दिल जीतने में असफल रहा है। अभी भी कांग्रेस जनाक्रोश के नाम से रैली-प्रदर्शन कर रही है, लेकिन हकीकत में यह कार्यक्रम जन(जनता) के बिना का आक्रोश व्यक्त करता है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की जरुरत है, लेकिन कांग्रेस अब यह मौका गंवा चुकी है। मोदी सिर्फ चालाक ही नहीं बल्कि, खुशकिस्मत भी है।
जय हिंद!

सोमवार, 21 नवंबर 2016

नोटबंदी से मंदी की संभावना : बजट अनुमान हो जायेंगे उल्टे, टेक्स वसूली में होगा 15 हजार करोड़ का घाटा

गुजरात में दो माह में पांच लाख से भी ज्यादा लोग हो सकते है बेरोज़गार

नोटबंदी का असर गुजरात सरकार की बजट पर पड सकता है। सरकार की करों की आय में बडी कमी आ सकती है। रियल एस्टेट पांच साल पीछे चला गया है। नोटों की कमी से जनता की खरीददारी कम होने से उत्पादन और रोजगारी पर भी भारी असर हुआ है।
सरकार की मुख्य आय जैसे कि स्टेम्प ड्युटी, जमीन महेसूल, मनोरंजन कर, वाहन व्यवहार कर और वेल्यु एडेड टैक्स की आय घटेंगी। वित्त विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक चलन की कमी अगर इसी तरह चलती रही तो मार्च के अंत तक पिछले पांच माह में सरकार की महेसूली आय में 20 प्रतिशत की कमी होने की आशंका है। अगर जनवरी माह के शुरु होते स्थिति में सुधार हो तो भी आय में 10 से 15 प्रतिशत तक का घाटा हो सकता है। बजट पेश करते समय सरकार ने अनुमान लगाया था कि उसकी महेसूली आय 116366 करोड हो सकती है अगर इस अनुमान को देखे तो सरकार को साल के अंत में 15000 करोड तक की आय कम मिल सकती है।
देश में 12 से 18 माह बडी मुश्किल में...
500 और 1000 के नोटबंदी की वजह से देश में दबेपांव मंदी आ रही है। प्राथमिक आंकडों के मुताबिक पांच लाख करोड बैंकों में जमा हो चुके है और अभी 10 लाख करोड बाकी है। ऐसे हालात में अगर पांच लाख करोड़ भी जमा नहीं होंगे तो अर्थतंत्र को भारी नुकसान होने की आशंका है।
अब बात करेंगे बेरोजगारी की लडाई के बारे में...
नोटबंदी के चलते प्राइवेट कंपनीयां और गुजरात के अन्य व्यवसाय में बहुत बडा बदलाव आ रहा है। असंगठीत क्षेत्र से जुडे लोगों पर सबसे ज्यादा असर पड सकता है। उनकी रोजी-रोटी दो-तीन माह के लिए बंद हो सकती है। गुजरात की बात करें तो कम से कम पांच लाख कामदारों और नौकरी-पेशेवालों पर अल्पसमय की बेकारी का खतरा मंडरा रहा है।
अगर भारतीय रिजर्व बैंक 24 नवम्बर तक अवधि बढायें तो असर जल्दी हो सकता है। सुरत की बात करे तो वहां कोस्ट कटींग शुरु हो चुका है। अहमदाबाद में भी धीरे-धीरे वह आ रहा है। हररोज काम कर वेतन पानेवाले कामदारों  को पेमेन्ट नहीं मिल रहा।
जानते हैं कि सर्वे में आम जनता की क्या है राय...
नोट बदलवाने के लिए खडे लाइन में से एक बुजुर्ग ने कहां कि, 500 और 1000 कि नोट पर बैन लगाकर 2000 कि नोट छापने का तय होने पर इतनी मुश्किलों का सामना करना पड रहा है अगर RBI ने 2000 के स्थान पर 200 के नोट छापे होते और 500 के नये नोट छापने पर ध्यान दिया होता तो इस वित्तीय संकट का इतना भयानक चेहरा नहीं देखने को मिलता। सामान्य लोगों के लिए बडे पेमेन्ट ओनलाइन हो सकते है लेकिन छोटी खरीददारी के लिए छोटे नोटों की जरुरत है। आज स्थिति ऐसी है कि 2000 की नोट पाकर लोग सेल्फी तो ले लेते है लेकिन जब बाजार में उसे एक्सचेंज करवाना हो तो दुकानदारों के पास चिल्लर की समस्या खडी हो जाती है। जब 2000 की नोट लेकर सब्जी या राशन लेते है तब दुकानदार के पास 200 या 300 का बिल बनने पर ग्राहक को चुकाने के लिए 1800 या 1700 नहीं है।
खैर, इन सभी बातों के अलावा खास बात तो यह है कि इस नोटबंदी के बाद मोदी की अग्निपरीक्षा होनेवाली है। जिन राज्यों में चुनाव होनेवाले है वहां इस नोटबंदी के कारण क्या असर पडा है इसका सर्वे चल रहा है तब सात राज्यों की 10 विधानसभा और लोकसभा की 4 बैठकों पर हुए उपचुनाव में मोदी की लोकप्रियता का टेस्ट 22 नवम्बर को तय होगा।
नोटबंदी के बाद आसाम, प.बंगाल, म.प्रदेश, तामिलनाडु, त्रिपुरा, अरुणाचलप्रदेश और पोंडिचेरी में चुनाव हुए है। लोगों की सोच को परखने का यह सही समय है, क्योंकि 2017 में उत्तरप्रदेश, पंजाब और गुजरात विधानसभा चुनाव आनेवाले है। नोटबंदी का विरोध कर रही (AAP) आम आदमी पार्टी पंजाब में और बहुजन समाजवादी पार्टी उत्तरप्रदेश में जोरों पर है। मोदी ने इन राज्यों में आर्थिक असर पर गहनता से सर्वे करवाया है। एक बात और कि मोदी सरकार के विपरीत एजन्डे के कारण विपक्ष उनके साथ नहीं है।
अब बात करते है देश में हो रही शादियों के बारे में...
देश में मोदी सरकार के कायदे कानून देखने लायक है। एक ओर राजनैतिक नेता अपनी बेटी की शादी में 500 करोड का धुंआ उडा रहा है वही दूसरी ओर कोमन मेन की बेटी या बेटे की शादी हो तो वह सिर्फ 2.50 लाख जितनी रकम ही बैंक में से निकाल सकता है। सवाल पूछना चाहुंगी कि क्या इस महंगाई के दौर में एक सामान्य परिवार में ढाई लाख रुपये में शादी हो सकती है। ढाई लाख रुपये में तो शादी का मंडप भी नहीं बांधा जा सकता। सरकार की घोषणा के बाद भी जिन घरों में शादियां है उन्हें बैंक उनके एकाउन्ट में से ढाई लाख निकालने की इजाजत नहीं दे सकती, क्योंकि बैंको की तिजोरियों में नया रुपया ही नहीं है।
आखिर में... Make in India OR Back in India.
जय हिंद।

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

नेहरु-गांधी और बच्चन परिवार की दोस्ती और दुश्मनी

पिछले कुछेक दिनों से अमिताभ बच्चन और नेहरु-गांधी परिवार के बीच की दुश्मनी चर्चा में है। सुनने को बहुत मिला, लेकिन किसका अहेसान किस पर है यह समझने के लिए थोडे फ्लेशबेक में जाने की जरुरत है।
बच्चन परिवार का नेहरु परिवार के साथ रिश्तों की शुरुआत इलाहाबाद से शुरु होती है। हरिवंशराय बच्चन को केम्ब्रीज युनि. में पढने भेजने के लिए नेहरुजी ने ही स्कोलरशिप मंजूर की थी और बाद में उन्हें विदेश विभाग में सन्मानपूर्वक की नौकरी भी दिलवाई थी। एक दिन सरोजिनी नायडू ने कवि हरिवंशराय बच्चन और उनकी शीख पत्नी तेजी बच्चन का परिचय जवाहरलाल नेहरु और उनकी बेटी इन्दिरा से करवाया। उस समय अमिताभ की उम्र महज चार साल की थी। उस उम्र में ही उनका परिचय छोटे से राजीव से हुआ। उस समय राजीव की उम्र सिर्फ दो साल की थी। एक दिन बच्चन के इलाहाबाद स्थित बैंक रोड रेसिडेन्स में फेन्सी ड्रेस की स्पर्धा आयोजित की गई। उसमें राजीव गांधी ने हिस्सा लिया था और राजीव ने स्वातंत्रसेनानी जैसा ड्रेस पहना था। छोटे बच्चों के कपडे सरक जाते थे लेकिन सभी ने बहुत धमाल किया।
उसके बाद जवाहरलाल नेहरु नई दिल्ली में प्रधानमंत्री के नए निवासस्थान तीन मूर्ति भवन में रहने चले गए थे और तीन मूर्ति भवन की हरियाली में राजीव और संजय के साथ अमिताभ और अजिताभ को खेलते देखा गया था। राजीव और संजय दून स्कूल में पढने गए। जबकि अमिताभ और उनके भाई अजिताभ नैनीताल की शेरवूड स्कूल में पढने गए थे, लेकिन जब वेकेशन हो तब यह सारे दोस्त नई दिल्ली में मिलते और राष्ट्रपति भवन के स्विमिंग पुल में स्विमिंग करने जाते।
बहुत कम लोगों को पता है कि आज के महानायक अमिताभ बच्चन को वैश्चिक सिनेमाजगत के साथ सबसे पहले परिचय राजीव और संजय गांधी ने करवाया था। राष्ट्रपतिभवन में नहेरु-गांधी परिवार के लिए कुछेक क्लासिक युरोपियन फिल्मों का स्क्रीनिंग होता तब राजीव और संजय अमिताभ को यह फिल्में देखने साथ में ले जाते थे।
”क्रेइन्स आर फ्लाइंग” जैसी फिल्में उन्होंने साथ में देखी थी। खासकर युद्ध-विरोधी संदेश देती जेक और रशियन फिल्में राजीव और अमिताभ ने साथ में देखी थी। इन्दिरा गांधी के भरोसेमंद साथीदार यशपाल कपूर ने तो अमिताभ को दिल्ली की प्रतिष्ठित सेन्ट स्टीफन कोलेज में प्रवेश दिलवाया था, लेकिन अमिताभ ने अभ्यासक्रम की अनुकूलता के लिए विकल्प के तौर पर किरोरीमल कोलेज में जाना पसंद किया था जबकि अजिताभ सेन्ट स्टीफन कोलेज में पढने गए।
अमिताभ बच्चन पूना की फिल्म एन्ड टेलिविजन इन्स्टीटयूट में अभिनय का कोर्स करने के बाद काम ढूंढते थे। कही काम नहीं मिल रहा था तब उन्हें पहला फिल्म ब्रेक ”सात हिन्दुस्तानी” फिल्म में मिला। यह फिल्म के ए अब्बास ने बनाई थी और के ए अब्बास इन्दिरा गांधी के बहुत निकट थे। कहा जाता है कि इन्दिरा गांधी की सिफारिश के कारण ही अमिताभ को इस फिल्म में काम मिला था।
उसके बाद इन्दिराजी हरिवंशराय बच्चन को राज्यसभा में ले गई जबकि तेजी बच्चन को १९७३ में फिल्म फाइनान्स कोर्पोरेशन का डायरेक्टर बना दिया गया। यह वह समय था जब अमिताभ और जया की शादी थी। महेमानों का बहुत छोटा लिस्ट तैयार किया गया था। महेमानों का लिस्ट तैयार करते समय संजय गांधी परिवार की ओर से उपस्थित थे।
बहुत कम लोग जानते है कि अमिताभ बच्चन ने पूरे समय के एक्टर के तौर पर कामकाज शुरु किया तब राजीव गांधी आये-दिन अमिताभ को मिलने सेट पर जाते थे। फिल्म का शोट पूरा ना हो तब तक वे अमिताभ का इंतजार करते थे। शूटिंग डिस्टर्ब नहीं करते थे।
अमिताभ खुद ही पुरानी बातों को याद करते हुए कहते है : ”राजीव कभी भी कही भी उनके परिवार के नाम का इस्तेमाल नहीं करते थे। कई बार कोई पूछे तो वे सिर्फ ”राजीव” इतना ही कहते। सरनेम बोलते नहीं थे जिससे कोई उन्हें जल्दी पहचान ना सके और सामान्य इन्सान के साथ उनका नाता बना रहे”।
उसके बाद इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित किया। उस समय अमिताभ और संजय गांधी एक साथ देखने मिलते। आपातकाल को समर्थन देने के संदर्भ में उन्हें मीडिया के अनेक सवालों का सामना करना पडता था। ११ अप्रैल को राजीव गांधी ने दिल्ली में एक चेरिटी शो ”गीतो भरी शाम” का आयोजन किया था। उसमें अमिताभ और जया बच्चन ने उपस्थिति दर्ज कराई थी।
इन्दिरा गांधी द्वारा लगाये गये आपातकाल के समय विद्याचरन शुक्ल केन्द्र सरकार में माहिती और प्रसारण विभाग के मंत्री थे। आपातकाल के दौरान किसी भी फिल्म में हिंसात्मक द्र्श्य हो तो सेन्सर बोर्ड फिल्म को पास नहीं करता था। उस दौरान रमेश सीप्पी की फिल्म ”शोले” बनी। उसमें तो भरपूर हिंसा थी। आपातकाल के नियमो के अनुसार इस फिल्म को सेन्सर में पास करवाना नामुमकीन था, लेकिन इस फिल्म में अमिताभ बच्चन भी धर्मेन्द्र के साथ मुख्य किरदार में थे और अमिताभ के नेहरु-गांधी फेमिली के साथ पारिवारिक संबंध के कारण ही ”शोले” फिल्म में थोडी बहुत काट-पीट और क्लाइमेक्स में चेन्जीस के साथ सेन्सर बोर्ड में पास करवा दी गई। यह भी नेहरु-गांधी परिवार का बच्चन पर एक बडा अहेसान था।
आपातकाल का समय पूरे १९ महिने रहा। इस दौरान किशोरकुमार के गाने ओल इन्डिया रेडियो या दूरदर्शन पर प्रसारित करने पर प्रतिबंध रखा गया था। आपातकाल के नियम बहुत सख्त थे।
ऐसे में संजय गांधी की प्लेन एक्सीडेन्ट में मौत हुई। राजीव और अमिताभ ज्यादा करीब आये। १९८२ में एशियन गेम्स का शानदार खेलोत्सव आयोजित किया गया तब राजीव गांधी ने ओपनिंग सेरेमनी के समय अमिताभ बच्चन के सिग्नेचर वोइस का इस्तेमाल किया था। इस खेलोत्सव के मुख्य ओर्गेनाइजर राजीव गांधी थे जबकि अमिताभ बच्चन एन्कर थे।
राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने उसके बाद उनके बचपन के साथी अमिताभ को राजनीति में ले आए। कांग्रेस की टिकट दिलवाकर इलाहाबाद से चुनाव लडवाया और अमिताभ बच्चन को लोकसभा में ले गए।
इस दौरान वी.पी.सिंह ने बोफोर्स कांड चगाया और उसमें अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ का नाम भी आया। असमंजस में फंसे अमिताभ बच्चन ने राजनीति छोड दी। बरसो बाद बोफोर्स कांड में गांधी परिवार को क्लीनचिट मिली है।
अमिताभ बच्चन ने सक्रिय राजनीति छोड दी, लेकिन राजनेताओं के साथ दोस्ती नहीं छोडी। एक सुबह उस समय के प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौडा और शिवसेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे अमिताभ के जूहु स्थित बंगले में सुबह-सुबह चाय-नास्ता करते दिखे। यह बात कई लोगो के देखने में आई।
उसके बाद अमिताभ की एबीसीएल कंपनी को जबरदस्त नुकसान हुआ। अमिताभ बच्चन ने इस नुकसान की भरपाई के लिए समाजवादी पार्टी के अमरसिंह और ”सहारा”वाले सुब्रतो रोय की मदद ली। इस आर्थिक मदद करने के बदले में अमरसिंह अमिताभ बच्चन परिवार को मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी में खींच ले गये। अमरसिंह ने जया बच्चन को राज्यसभा में स्थान दिलवाया और एक प्रकार से राजनीति छोड देने के बावजूद बच्चन परिवार गांधी परिवार के विरोधी ऐसे मुलायम की पंगत में बैठ गया। अमरसिंह एक उस्ताद इन्सान है। अमरसिंह ने तो जिस पूंजी की मदद की थी उसका बदला समाजवादी पार्टी को ग्लेमरस बनाने में कर लिया।
अमिताभ बच्चन ने एक प्रोफेशनल एक्टर होने के बावजूद अपने आपको सिर्फ एक्टिंग में सीमित रखने के बजाय जया बच्चन को संसद में भेजा और अमिताभ बच्चन खुद उत्तर प्रदेश के ब्रान्ड एम्बेसेडर बन गए। खून, लूट, चोरी-डकैती, अपहरण से त्रस्त युपी की उन्होंने तारीफ की, जहां बीजली या सडक का आज भी ठिकाना नहीं है।
ऐसा ही मुंबई में हुआ। अमिताभ बच्चन खुद राजनीति में न होने के बावजूद उनकी पत्नी जया बच्चन को मुंबई के एक समारोह में मराठी भाषा का नाटक लेकर बैठे ठाकरे परिवार को चिढाने के लिए विधान किया ”हम तो युपीवाले है, हिन्दी में बोलेंगे”। और राज ठाकरे चिढ गये। अमिताभ की फिल्में प्रदर्शित ना हो उसके लिए उधम मचाया। आखिर में अमिताभ बच्चन ने माफी मांगी तब मामला शांत हुआ।
अब फिर अमरसिंह का मामला आया है। मुलायम और अमरसिंह के बीच रिश्ते बिगडने से अमरसिंह ने पार्टी छोडी। उनके साथ जयाप्रदा ने भी पार्टी छोडी, लेकिन जया बच्चन को राजनीति में लानेवाले अमरसिंह को दु:ख तब हुआ जब जया बच्चन अमरसिंह के साथ नहीं रही। निजी तौर पर अमरसिंह मानते है कि बच्चन परिवार ने उन्हें धोखा दिया है।
उसके बाद अमिताभ बच्चन गुजरात में उनकी ”पा” फिल्म टेक्स फ्री करवाने आए। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अमिताभ से भी ज्यादा चतुर निकले। फिल्म को टेक्स फ्री करा देने के बदले में मोदी ने अमिताभ को गुजरात का ब्रान्ड एम्बेसेडर बना दिया। इस कारण से गुजरात को फायदा ही हुआ, लेकिन सवाल यह है कि अमिताभ ने यह काम उनके फिल्म को टेक्स फ्री करवाने के लिए ही किया है या फिर गांधी परिवार के जानी दुश्मन नरेन्द्र मोदी के साथ हाथ मिलाकर अमिताभ ने सोनिया गांधी पर पलट वार किया है यह तो अमिताभ ही जाने। नरेन्द्र मोदी जिस तरह एक नेता है और अंदर से अभिनेता भी है, उसी तरह अमिताभ बच्चन एक अभिनेता है और अंदर से एक राजनेता भी है। और इसी कारण इलाहाबाद से सांसद बनने के बाद सार्वजनिक रुप से भले उन्होंने राजनीति छोड दी हो। उन्होंने अंदर से राजनीति छोड दी या नहीं यह सवाल अभ्यास का विषय है और इसी कारण से ही राजनीति उन्हें भी नहीं छोडती।
नेहरु-गांधी परिवार का बच्चन परिवार पर अनेक अहेसानों के बावजूद दो परिवारो के बीच यह दरार क्यों खडी हुई ? नेहरु-इन्दिरा-राजीव ने तेजी बच्चन, हरिवंशराय बच्चन और अमिताभ उन सभी को कुछ न कुछ दिया ही है।
मुंबई की बान्द्रा सी-लिंक के उदघाटन के समय अमिताभ बच्चन की उपस्थिति के बारे में और उसके बाद जो विवाद खडा हुआ है लगता है वह भी कुछेक कांग्रेसियों ने सोनिया गांधी की खुशामत के लिए ही शुरु किया गया है। सोनिया गांधी ऐसी निम्न स्तर की हरकतों से दूर रहना पसंद करती है, लेकिन महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के बीच की राजनीति अमिताभ बच्चन के विवाद के पीछे हो ऐसा लगता है। इस विवाद को बंद करने का आदेश भी १०, जनपथ में से ही आया है।
जय हिंद

बुधवार, 29 जुलाई 2009

काश्मीर सेक्स कांड और नैतिकता का हाई वोल्टेज ड्रामा

काश्मीर सेक्स कांड : क्या था मामला
काश्मीर में २००६ के अप्रैल में एक सेक्स टेप घुमा जिसमें १५ साल की लडकी एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ दिखाई गई थी। पुलिस ने इस सेक्स टेप की जांच शुरु की और इस लडकी को ढूंढ निकाला। यास्मिन नामक इस लडकी ने पुलिस के सामने फरियाद की और बाद में जो कबूला वह चौंकानेवाला था। यास्मिन के कहने के मुताबिक काश्मीर में उसके जैसी नाबालिग बच्चियों और लडकियों को फंसाकर उन्हें सेक्स ट्रेड में धकेलने का बहुत बडा नेटवर्क चलता था और उसमें असंख्य वरिष्ठ नौकरशाह और राजनेता शामिल थे। यास्मिन ने अपनी जानकारी के मुताबिक ४० जितनी नाबालिग बच्चियों और लडकियों को वरिष्ठ नौकरशाह और राजनेताओं की हवस के लिए इस्तेमाल की होने की जानकारी पुलिस को दी और यह भी बताया कि सबिना नामक एक महिला इस रेकेट की सूत्रधार है। पुलिस ने इस जानकारी के जरिये सबिना को गिरफ्तार किया। दौरान इस सेक्स रेकेट की जानकारी मीडिया में बाहर आई और उसके साथ ही लोगों में आक्रोश फूट निकला। लोगों ने सबिना का घर जला दिया और समग्र काश्मीर में धमाल शुरु हो गया। पुलिस इस केस में कदम उठाने के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं थी इसलिए लोगों का आक्रोश ज्यादा भडका और बहुत उहापोह के बाद आखिर इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सबिना तथा अन्य पीडित लडकियों के पास से मिली जानकारी के आधार पर इस केस में जून २००६ में पहला आरोपपत्र दाखिल किया गया और उसमें एडिशनल एडवोकेट जनरल से लेकर बीएसएफ के प्रमुख सहित के लोगों के नाम आरोपी के रुप में थे। इसके अलावा मुफ्ती मुहम्म्द सइद के मंत्रीमंडल के दो मंत्री गुलाम अहमद मीर और रमन मट्टु एवं मुफ्ती के अपने प्रिन्सिपाल सेक्रटरी इकबाल खांडे इस केस में आरोपी है।
राजनेता हर मौके का फायदा उठाने में और प्रतिकूलता को अपनी अनुकूलता में तब्दील करने में बडे ही चतुर होते है और वह भी नैतिकता का नाटक कर। इस ड्रामेबाजी का ताजा उदाहरण है उमर अब्दुल्ला का जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री पद से दिया गया इस्तीफा। २००६ में पूरे काश्मीर में श्रीनगर सेक्स कांड ने सनसनी मचा दी थी। इस कांड में ५० जितने राजनेता शामिल है ऐसा आरोप उसी वक्त हुआ था लेकिन दो-चार को छोड किसी का नाम बाहर नहीं आया था। इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी गई और सीबीआई क्या करती है यह हम अच्छी तरह से जानते है इसलिए जब तक ऊपर से हरी झंडी नहीं मिले तब तक किसी का नाम बाहर आये ऐसी उम्मीद भी नहीं थी इसलिए यह मामला ठंडा हो गया था। मंगलवार को उमर अब्दुल्ला के विपक्षी महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के नेता मुज्जफर बेग ने काश्मीर विधानसभा में २००६ के इस सेक्स रेकेट का जीन फिर से बोतल में से बाहर निकाला और घोषणा की कि, सीबीआई ने इस सेक्स कांड में शामिल जिन राजनेता और वरिष्ठ नौकरशाहों की सूची तैयार की है उसमें एक नाम उमर का भी है। बेग के दावे के मुताबिक सीबीआई ने यह केस जहां चल रहा है उस पंजाब और हरियाणा कोर्ट को दी अपराधियों की सूची में उमर का नंबर १०२ है। बेग ने तो उमर के पिता और केन्द्र के पर्यटन मंत्री फारुख अब्दुल्ला को भी लपेटे में ले लिया और घोषित किया कि फारुख ने भी इस सेक्स कांड में अपना मुंह काला किया था और अपराधियों की सूची में उनका नंबर ३८वां है।
बेग की इस बात को सुनकर उमर अचानक ही तैश में आ गये और उन्होंने घोषित किया कि, उन पर लगाये गये आरोप गलत है लेकिन सवाल नैतिकता का है और एक राज्य के मुख्यमंत्री पर ऐसा गंभीर आरोप लगाया जाये यह कैसे चलता इसलिए उन्होंने इस्तीफा दिया है और जब तक इस मामले में बेदाग साबित नहीं होंगे तब तक पद पर नहीं लौटेंगे। उमर ऐसी प्रतिक्रिया देंगे इसकी कल्पना ना ही पीडीपी ने की थी और ना ही उनकी पार्टी के लोगों ने। पार्टी के लोगों ने उमर को बहुत समझाया कि ऐसे आरोपों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देना चाहिए लेकिन उमर ने इस निर्णय से पीछे हटने से मना कर दिया। विधानसभा के खत्म होने के बाद वे अपने पिता के साथ राज्यपाल से मिले और अपना इस्तीफा धर दिया। सीबीआई ने इसके बाद साफ किया कि उमर का नाम अपराधियों की सूची में नहीं है इसके बाद भी उमर ने इस्तीफे की बात को पकडे रखा। उमर ने इस तरह इस्तीफा धर दिया इसके कारण एक ओर सनसनी मची है वहीं दूसरी ओर उनके चमचे उमर की तारीफ के कसीदे पढने में लगे हुए है। उनके कहने के मुताबिक उमर ने खुद पर सिर्फ आरोप लगने मात्र से इस्तीफा देकर नैतिकता का एक श्रेष्ठ उदाहरण दिया है और दूसरे नेताओं को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। चलो, मानते है कि उमर ने जो किया उससे दूसरे नेताओं को प्रेरणा लेनी चाहिए लेकिन उमर ने जो कुछ किया उसका नैतिकता से कोई वास्ता ही नहीं है। वास्तव में उमर ने जो कुछ किया वह एक नाटक से विशेष कुछ भी नहीं और यह नाटक उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए किया है।
उमर अभी चहुंओर से फंसे हुए है। शोपियान में दो काश्मीरी लडकियों पर सेना के जवानों ने दुष्कर्म किया और बाद में उनकी बेरहमी से हत्या कर उनकी लाश को फेंक दिया उसके कारण अभी काश्मीर आग की लपटों में लिपटा हुआ है और पीडीपी के महबूबा मुफ्ती ने इस मामले सोमवार को काश्मीर विधानसभा में हंगामा कर उसका लाभ लेने के लिए जो तिकडम किया उसके कारण उमर बौखलाए हुए है। अभी केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है उमर की पार्टी उसमें हिस्सेदार है इसलिए केन्द्र के खिलाफ कुछ बोल नहीं सकते और सेना पर दोष मढ नहीं सकते इसलिए उमर की हालत खराब थी। काश्मीर में इस प्रकार के अभियान सत्ताधीशो को भारी ही पडते है और महबूबा के इस शतरंज के पासों को किस तरह उलटाना इसका रास्ता उमर के पास नहीं था उसी समय यह सेक्स स्केन्डल का जीन बाहर आ गया। चतुर उमर ने इस जीन को पकड लिया और नैतिकता का नाटक खेला। अब वे गद्दी पर ही नहीं होंगे तो शोपियान में जो कुछ भी हुआ उसके लिए दोष लगने का सवाल ही नहीं उठता। बेग ने वास्तव में यह मामला उठाकर फंसे हुए उमर को बाहर निकाला है।
अगर उमर अब्दुल्ला ने वास्तव में नैतिकता की सुरक्षा के लिए यह इस्तीफा दिया हो तो उनके पिता फारुख को भी केन्द्रीय मंत्रीमंडल में से इस्तीफा देने को कहना चाहिए। बेग के दावे के मुताबिक उमर और फारुख दोनों के नाम अपराधियों की सूची में है तो फारुख को भी नैतिकता दिखाने के लिए इस्तीफा देना चाहिए कि नहीं? उमर नैतिकता को उच्च पैमाने पर स्थापित करना चाहते है तो उन्हें अपने खानदान में भी उसका पालन हो यह देखना चाहिए। चलिए देखते है कि, फारुक क्या करते है। उमर ने इस्तीफा देकर सचमुच नैतिकता दिखाई है या नाटक किया है उसे साबित करना अब फारुक के हाथ में है। नैतिकता की शुरुआत खुद के घर से होनी चाहिए।
जय हिंद

शनिवार, 25 जुलाई 2009

`सच का सामना' पर हंगामा

सबसे पहले `सच का सामना' कार्यक्रम के बारे में जानते है। ’सच का सामना’ अमरिका का गेम शो द मोमेन्ट ऑफ ट्रुथ पर आधारित है और इस शो का होस्ट मार्क वेलबर्ग है एवं अमरिका में यह शो फोकस नेटवर्क पर से प्रसारित होता है। हालांकि असल में यह शो अमरिका का नहीं है। इस शो की जडें कोलम्बिया में है और उसके सर्जक लाइटहार्टेड एन्टरटेनमेन्ट के मालिक अमरिकन टीवी निर्माता हावर्ड स्कुल्ज है। सबसे पहले यह शो कोलम्बिया में २००७ में पेश हुआ था और इसमें सबसे बडा इनाम १० करोड कोलम्बियन डॉलर था। अमरिका में यह शो जनवरी २००३ में प्रसारित हुआ था। अमरिका में इस कार्यक्रम की शुरुआत अमरिकन आइडल विजेता से हुई थी और उसे जबरदस्त पब्लिसिटी दी गई थी। इसका पहला शो २.३० करोड लोगों ने देखा था। इसके बाद दूसरे सभी देशों में इस शो की नकल शुरु हुई। अभी विश्व में ४६ देशों में इस कार्यक्रम की नकल होती है और टीवी पर से यह कार्यक्रम प्रसारित होते है। अमरिका में हाल में यह कार्यक्रम प्रसारित नहीं होता लेकिन अगस्त २००९ से उसके नये शो प्रसारित होंगे। अमरिका में इस कार्यक्रम में सबसे बडा इनाम पांच लाख अमरिकन डॉलर है। ’सच का सामना’ में अमरिकन फोर्मेट का ही अनुकरण किया गया है और उसमें भी स्पर्धक को ५० सवाल पूछे जाते है और उसमें से २१ सवाल पूछे जाते है। इन सवालों के जवाब सही है या गलत यह जानने के लिए पोलीग्राफ टेस्ट किया जाता है और पोलीग्राफ कहे कि स्पर्धक ने गलत जवाब दिया है तो स्पर्धक को बाहर निकाल दिया जाता है। ’सच का सामना’ के लिए अमरिकन पोलीग्राफ एक्सपर्ट हर्ब इरविन की मदद ली जाती है।
अब ’सच का सामना’ कार्यक्रम पर जो हंगामा मचा है उसकी बात करते है। हमारे देश में भारतीय संस्कृति के नाम से जो नाटक चलता है ऐसा नाटक दुनिया में कहीं नहीं चलता होगा। हमारे राजनेता, बुध्धिजीवी, समाज सेवक आदि के अपने-अपने चोके है, अलग-अलग जमात है और खुद के अनुकूल न हो ऐसा कुछ भी घटित होता है तब इस जमात में से कोई भी भारतीय संस्कृति का झंडा लेकर खडा हो जाता है और शोर मचाने लगता है। एक तो यह वर्ग बहुत बातूनी है और दूसरा कि इनके तमाशे के कारण इनका शोर समग्र देश तक पहुंच जाता है और बाद में इनकी हां में हां मिलानेवाले और मुंडी हिलाने वाले आ जाते है और शोर बढता ही जाता है। शोर बढे तब सरकार जागती है और नोटिसे जारी करने जैसी सभी कवायदें शुरु हो जाती है। इस खेल में जो सबसे ज्यादा शोर मचा सकता हो वह जीत जाता है और कुछेक समय के बाद भारतीय संस्कृति जहां थी वहीं आकर खडी हो जाती है और शोर मचानेवाले अपने घर जाकर चादर तानकर सो जाते है।
स्टार प्लस चैनल पर गत हप्ते से शुरु हुए ’सच का सामना’ नामक रियालिटी शो के मामले यह हंगामा शुरु हो गया है। गत हप्ते यह शो शुरु हुआ और उसमें पहले हप्ते ही जिस प्रकार के सवाल पूछे गए उसके कारण अचानक ही भारतीय संस्कृति के झंडाधारी जाग उठे और उन्हें चिंता होने लगी कि इस प्रकार के सवाल अगर टीवी कार्यक्रम में पूछे गये तो भारतीय संस्कृति मिट्टी में मिल जायेगी। उन्होंने इस शो के सामने शोर मचाना शुरु किया और संसद में भी इस मामले हंगामा मचा दिया। संसद में हंगामा होने के कारण सरकार को भी लगा कि कुछ करना पडेगा इसलिए वह भी जाग उठी और इस शो को प्रसारित करनेवाली टीवी चैनल स्टार प्लस को नोटिस जारी कर दी। केन्द्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जारी की नोटिस में सवाल पूछा गया है कि, यह कार्यक्रम भद्र व्यवहार और शालीनता का भंग करती है, उसे देख क्यों बंद नहीं किया गया। स्टार प्लस को नोटिस का जवाब देने के लिए २७ जुलाई तक का समय दिया गया था लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने ‘सच का सामना’ की सुनवाई को स्थगित कर दिया है। न्यायाधीश संजीव खन्ना की एकल पीठ ने मामले को मुख्य न्यायाधीश एपी शाह की खंडपीठ को सौंप दिया है। अब इस मामले पर सुनवाई २९ जुलाई को होगी। चैनल क्या खुलासा करती है यह पता नहीं लेकिन अभी तो यह मामला एकदम गरम हो गया है। ’सच का सामना’ नामक यह कार्यक्रम अमरिका के द मोमेन्ट ऑफ ट्रुथ नामक कार्यक्रम की हू-ब-हू नकल है और अमरिका में यह कार्यक्रम प्रसारित हुआ तब भी जोरदार हंगामा मचा था। वहां भी इस कार्यक्रम के कारण बहुतों की गृहस्थी छिन्न-भिन्न हो जायेगी ऐसी दलील होती थी और हमारे यहां भी वही दलीले हो रही है। अमरिका में वास्तव में कितने लोगों की गृहस्थी इस कार्यक्रम के कारण बिखरी यह पता नहीं लेकिन हमें इतना मालूम है कि, हमारे यहां इस शो के पहले स्पर्धक बने विनोद कांबली ने बहुत से जोरदार जवाब दिए उसके बाद भी उनका दाम्पत्य जीवन सही-सलामत है। खैर अब मूल बात पर आते है। यह कार्यक्रम भारतीय संस्कृति के खिलाफ है और उसके कारण यह कार्यक्रम बंद कर देना चाहिए ऐसी जो दलीले हो रही है वह जायज है या नही? बिलकुल भी नहीं। जिस देश में ‘सत्यमेव जयते’ राष्ट्रीय सूत्र हो वहां ऐसी बात हो वह सचमुच तो हमारे दंभ का सुबूत है और हमारे यहां ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम सिर्फ हमारी पसंद को तवज्जो देते है, दूसरे किसी की बात को नहीं स्वीकार पाते। हमारे यहां संस्कृति के नाम से जो नाटक होते है इसका कारण यह है कि हम मनोरंजन और वास्तविकता का भेद ही नहीं समझ पाते। पहली बात यह कि यह एक मनोरंजन का कार्यक्रम है और उसका संस्कृति के साथ कोई लेना-देना ही नहीं है। दूसरी बात यह कि इस कार्यक्रम में जिस प्रकार के सवाल पूछे जाते है वह एकदम निजी है और किसी को असमंजस में लाकर खडा कर दे ऐसे भी है लेकिन यह सवाल किसी से जबरदस्ती नहीं पूछे जाते। कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से अपनी निजी जिंदगी के पन्ने खोलने बैठ जाये तो उसमें दूसरे किसी को आपति उठाने की क्या जरुरत है? इस देश में सभी को इतनी स्वतंत्रता तो है ही। इन सवालों के सही जवाब देने से किसी एक व्यक्ति का घर टूटे या उसका दाम्पत्यजीवन छिन्न-भिन्न हो तो वह उस व्यक्ति का प्रश्न है। ऐसा भी हो सकता है कि स्पर्धक किसी सवाल का सही जवाब दे और पोलीग्राफ उसे गलत ठहराये उसके कारण स्पर्धक के जीवन-साथी के मन में शक हो लेकिन फिर से एक बार कहूंगी कि, यह उन दोनों का प्रश्न है और ऐसा जोखिम उठाना चाहिए या नहीं यह स्पर्धक ही तय कर सकता है। अगर उस व्यक्ति को ऐसा जोखिम उठाने में कोई दिक्कत ना हो और अपने जीवनसाथी पर भरोसा हो या खुद में कितना भरोसा है यह जानना हो तो उसके सामने ओरों को आपत्ति उठाने की कोई जरुरत ही नहीं है और सबसे महत्वपूर्ण बात कि यह कार्यक्रम टीवी चैनल पर प्रसारित होता है और जिस तरह उसमें हिस्सा लेने वाले को अपनी बात करने की आजादी है उसी तरह ही आपके पास भी इस कार्यक्रम को देखना चाहिए या नहीं यह तय करने की स्वतंत्रता है। आपको पसंद ना हो तो टीवी बंद कर दीजिए, दूसरी चैनल देखिए या फिर चादर तान के सो जाइए इसमें संस्कृति को बीच में लाने की क्या जरुरत है। सत्य को स्वीकारना बहुत मुश्किल होता है।
जय हिंद